Wednesday, January 13, 2016

अपनों से बेगाने हो चुके, लोगों को परायों ने अपनाया !!! अपना घर में जाकर महसूस होती है मानवता की सेवा!!

अपनों से बेगाने हो चुके, लोगों को परायों ने अपनाया !!!
अपना घर में जाकर महसूस होती है मानवता की सेवा!!
  आज संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं, शहरों में हम दो-हमारे दो के फोर्मुले पर सिमटते परिवार और अब इस से भी घट कर मेट्रोज में लिव-इन-रिलेशन शिप का फेशन आ गया है. ऐसे दौर में बुजुर्गों की बुडापे में देख रेख करना कुछ लोगों को सेवा के बजाय सर दर्द लगता है. समाज के लिए ये आज की एक गंभीर और चुनौती पूर्ण समस्या है !!
 आज अपना घर में फिर एक बार मुझे सपत्निक जाने का मौका मिला, वहां के फाउंडर ट्रस्टी श्री प्रेम चन्द् लुनिया जी भी साथ थे. जिनके अथक प्रयासों से इसकी अजमेर में कुछ वर्षों पूर्व भरतपुर के माँ माधुरी व डॉ. ब्रिज सुन्दर जी की प्रेरणा व मार्ग दर्शन से लोहागल रोड स्थित नारी शाला के सरकारी भवन में शुरुआत हुई.
 अस्सी लापता महिलाऐं व पुरुष वहाँ भरती हैं, जिनमें से अधिकतर तो याददाश्त खो चुके हैं, कुछ का मनो-चिकित्सक इलाज़ कर रहे हैं, उन्ही में से एक माताजी अचानक उठकर हमारी ओर आई और बहुत अस्पष्ट और कन्फ्यूज्ड शब्दों में कुछ कुछ बोलती रही, उन शब्दों में से जो लुनिया जी को इंगित थे, ये बात हमें समझ आई की “तू मुझे चोपाटी से उठा के लाया था”  तो लुनिया जी को याद आया की हाँ वे ही उसे अस्त व्यस्त हाल में आना सागर चोपाटी से रिक्शे में चार साल पहले अपना घर में ले गए थे. फिर मेरी और मुढ कर “छोटा बच्चा, बच्चा” कहते कहते बोली “बेटा इस दुनिया में कोई अपना नहीं है.” सिर्फ ये दो ही लाइनें साफ़ बोल पायी थी वो. अपना घर में ये बातें उस के मुख से सुन कर की कोई अपना नहीं है – दिल को गहराई तक छू गया.
 अपना घर के उन सेवा धारी भाई बहनों के समर्पण और त्याग को तहे दिल से दुआएं, प्यार, आशीष, शुभकामनाएं और उनके हिम्मत को दाद देते देते मन नहीं थका और बहुत ही भारी मन से लौट कर अब ये सोच कर मन विचलित हो रहा है की जिन माँ-बाप ने बच्चों को कन्धों पर ही नहीं बल्कि सर आँखों पर उठा कर पाला पोसा, जिस माँ ने अपना मुंह का निवाला त्याग कर, पहले अपनों के मुह  में डाला, उन्हें कैसे कोई भूल गया ???
डॉ अशोक मित्तल १३ जनवरी २०१६


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