Thursday, January 29, 2015

Friday, January 30, 2015
पुण्य तिथि पर बापू को शत शत नमन व् श्रद्धांजली। 
महात्मा गांधी के देश में क्यों है आदमी इतना अशांत?
26 जन. को ओबामा आये, बापू को श्रधान्जली दी, स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श बताया, उन्ही की तरह "मेरे भारत के भाइयों और बहनों" के सम्बोधन से अपना  भाषण शुरू किया, मार्टिन लूथर किंग और विनोभा भावे की अजमेर के गगवाना में हुई की मुलाक़ात का जिक्र भी आया। इन सब बातों और घटनाओं से क्या हम ये मान लें की अब देश में भाईचारा, प्रेम, आपसी सहयोग,सुखशांति का जो सपना बापू ने देखा था, वो अब पूरा होने का सही समय आ गया है?
क्या बापू की आत्मा सन्तुष्ट है? अब तक के 67 वर्षों के आज़ाद इंडिया की प्रोग्रेस से?
बापू को सिर्फ याद करने से नहीं उनके आदर्शों पर चलने से ही देश का उद्धार हो सकता है. क्या "सदा जीवन उच्च विचार" आज के नेताओं, अफसरों, पूंजी पतियों के आचार विचार में कहीं है?
बापू का चश्मा स्वछता अभियान के प्रतिक के रूप में अपनाया गया है, पर क्या इसके साथ साथ बापू की नज़र से भी कोई इस देश में देख रहा है?
डॉ. अशोक मित्तल drashokmittal.blogspot.com
महात्मा गांधी के देश में क्यों है आदमी इतना अशांत?
26 जन. को ओबामा आये, बापू को श्रधान्जली दी, स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श बताया, उन्ही की तरह "मेरे भारत के भाइयों और बहनों" के सम्बोधन से अपने भाषण शुरू किया, मार्टिन लूथर किंग और विनोभा भावे की अजमेर के गगवाना की मीटिंग का जिक्र भी आया। इन सब बातों और घटनाओं से क्या हम ये मान लें की अब देश में भाईचारा, प्रेम, आपसी सहयोग,सुखशांति का जो सपना बापू ने देखा था, वो अब पूरा होने का सही समय आ गया है?
क्या बापू की आत्मा सन्तुष्ट है? अब तक के 67 वर्षों के आज़ाद इंडिया की प्रोग्रेस से?

Wednesday, January 28, 2015

मोदी जी!
डॉक्टरों के अच्छे दिन कब आएँगे?
ज़हरीली दवा से मौत; नतीज़ा- डॉक्टर जेल में!
अस्पताल में परीज़न नाराज़; नतीज़ा - डॉक्टर की पिटाई!
हॉस्पिटल में नई मशीनों पर करोड़ों खर्च: डॉक्टर को सेलरी कितनी? २०,००० रुपए मासिक।
कुछ समय बाद घटिया मशीन खराब कौन ज़िम्मेदार: डॉक्टर!
अस्पताल की छत का प्लास्टर टूटा हो, औज़ारों में जंग लगा हो, ऑपरेशन थियेटर में मक्खी - मच्छर, कुत्ते - बिल्ली - चूहे सैर कर रहें हों - कौन ज़िम्मेदार ..........ड़ॉ ....र।
मरीज़ के वास्ते रात दिन, जी जान कौन लगाता है? ..........डॉक्टर।
मंत्री जी व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी आदि प्रभावशाली  हस्तियाँ जब अचानक हॉस्पीटल का निरीक्षण करते है तो उसके बाद किसे दोषी पाते है? (डॉक्टर को)
दवा की कमी, स्टाफ की कमी, डॉक्टर की कमी, बिस्तर, चादर, पानी, सफाई की कमी; कौन ज़िम्मेदार? बेचारा फिर वही..
हरेक निरीक्षण के बाद मीडीया कहता है अब "सुधरेगी अस्पताल की हालत" मंत्री जी ने भरोसा दिलाया.
ऐसी खबरें सुर्ख़ियो में साल भर में ८-१० बार तो आ ही जाती है और एक नई रोशनी मन में जगा जाती है की अब कुछ सुधरेगा। वो रौशनी की किरण कुछ समय बाद फिर
फिर से बुझ जाती है जब सुनने में आता है: "मरीज की मौत के बाद परिजनों द्वारा अस्पताल में तोड़फोड़, डॉक्टरो की पिटाई, अस्पताल पर इलाज़ में लापरवाही का आरोप" और आख़िर में "पुलिस द्वारा लापरवाही का मामला दर्ज".
किसके खिलाफ ? वही ... डॉक्टर और कौन. तो ये रोशनी की किरण के रोशन होने और गुल होने का सिलसिला कभी ख़त्म नहीं होने वाली शाश्वत क्रियाओं जैसे प्रतिदिन सूरज के उगने - डूबने जैसा लगता है।
और तो और पिटने के बाद, डाक्टरो का हड़ताल करना भी मानवता के खिलाफ और मरीज़ो की अनदेखी माना जाता है। मीडिया भी इसे अमानवीय कृत्य की उपाधियों से अलंकृत करने में पीछे नहीं रहता है।
किसी भी सरकारी अफ़सर को उँची आवाज़ में भी बोल दिया तो "सरकारी कार्य मे बाधा" के इल्ज़ाम मे क्या हो सकता है आप को पता है. लेकिन पिटने के बाद, दुर्व्यवहार के बाद भी डॉक्टर को ऐसी कोई सुरक्षा प्रदान नही है।  क्यूँ कि उसे सिर्फ़ सेवा करनी है मुह पर पट्टी बाँध कर। 
प्राइवेट डॉक्टर की क्लिनिक या प्राइवेट हॉस्पिटल में कोई ऐसी दुर्घटना हो जाए तो और भी बुरा।  अस्पताल का लाखों का नुकसान, १०-२० दिन हॉस्पिटल के दरवाजे बंद, पुलिस केस और साथ में आदि आदि कई झंझट. कौन भुगतता है? डॉक्टर! पर क्यों ??? समाज की नजरों में, समाज की पलकों पर नवाजे जाने वाले और धरती पर ईश्वर का स्वरुप मने जाने वाले डॉक्टर वर्ग का क्या इससे भी बुरा समय हो सकता है?

मोदी जी, अच्छे दिन आने वाले है,  ऐसी चर्चा आपने की थी,
पर डॉक्टरों के अच्छे दिन कब आएँगे??????  11  दिस 2014 

डॉ. अशोक मित्तल  drashokmittal.blogspot.com 

Thursday, January 22, 2015

Its not correct as published in "BAR Indian doctors from capitation fee colleges" British Medical Journal

I do not agree on the BMJ article to BAR Indian doctors from capitation fee colleges. Why blame Private Medical Colleges only? Yes the capitation fees is too high & there may be some pressure on the colleges not to fail a few candidates. But look at the condition of Government run Medical Colleges. Reservation seats for SC, ST, OBC, Girls etc. are approx. 60-70%. General Candidates who get more than 90% marks don't get admissions where as others get the same seats by getting only passing marks. Once they are admitted they can not be failed in any subjects. They have strong unions, caste wise, along with faculty members of same caste as their patrons who protect them & ensure that their caste's students do not fail. Some times such students do not even fullfill the minimum attendance criteria also. Without attending lectures they pass the exams.
Besides this, the out of turn promotion system is still worse. The most deserving & sincere teacher remains & retires as lecturer or demonstrator where as his 5-10 years junior from reserved quota is promoted to the post of HOD. In view private colleges teaching standard is high as compared to government. MCI inspection is also strict to private, where as most of the medical teachers posts are vacant in government run hospitals. Biomedical waste handling is worst in such government medical colleges,
I think all students from all medical college whether private or government should clear an equivalent test which is some thing like USMLE.

अजमेर की गन्दगी कौन साफ़ करेगा? 22 जन. 2015

अजमेर की गन्दगी कौन साफ़ करेगा? 22 जन. 2015
अजमेर के मन में सब से बड़ी चिंता आज यदि कोई है तो वो है सफाई! बात ये है की सफाई होगी कैसे? बड़ा सवाल -जिम्मेदारी किसकी है । नगर निगम की? साधनो, कर्मचारियों और इच्छा शक्ति की कमी, इन सबपे  भ्र्ष्टाचार के चलते कोई उम्मीद रखना ही बेकार है।  हाँ अजमेर की जनता यदि चाहे तो हो सकता है। जन भागेदारी से क्या नहीं हो सकता? बनाररस हिन्दू विश्व विध्यालय भी तो जनभागीदारी से ही बना था।  मालवीया जी ने अग्रणी भूमिका निभाई थी।
अजमेर की सफाई भी पब्लिक के सक्रीय योगदान से ही संभव है।  युवाओं से लेकर बुजुर्गों और गृहणियों से लेकर कामकाजी महिलाएं सभी इस नेक कार्य में जुटने को तैयार हैं। जरुरत सिर्फ इन सबको एक जुट करने की है।

Wednesday, January 21, 2015

21 जनवरी, 2015/ अजमेर के मन में क्या है ?? 
जब से अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने की खबर आई है तबसे अजमेर वासी बहुत खुश हैं। आजकल हर कहीं चर्चाओं का सिलसिला जारी है।  अजमेर की युया पीड़ी से लेकर सीनियर सिटीजन्स तक सभी नागरिक कुछ न कुछ राय मश्विरा कर रहे हैं।  पहले अजमेर ऐसा था - अब अजमेर कैसा होगया है? . बुद्धिजीवीयों, महिलाओं, युवाओं में सबसे ज्यादा वाद विवाद के विषय हैं - सफाई, यातायात व्यवस्था, पानी, बिजली, पब्लिक पार्क, वाहनों की पार्किंग, चिकित्सा सुविधाएँ, नेताओं व् सरकारी अफसरों की लाचारी और नगर निगम सहित अन्य संस्थाओं में में व्याप्त घोर भ्रष्टाचार। मीडिया में भी बड़े बड़े आर्टिकल्स छप रहे है। 
समस्यों की लम्बी लिस्ट है, सुधारों के अनगिनत सुझाव हैं, अजमेर को लेकर सबके मन में पीड़ा है, दर्द है, चुभन है, बचपन की यादें है, स्कूल कॉलेज के दिनों का नव-आज़ाद अजमेर है, लहलहाता सुभाष उध्यान है, आनासागर की झील का प्राकर्तिक मनोरम दृश्य है, बारादरी की छतरियाँ हैं और शिक्षा के क्षेत्र में, बास्केट बॉल, फुटबॉल आदि  में राष्ट्रीय स्तर की पहचान के स्मरण मात्र की गुद्गुदियां हैं  तो मन में वो पुराने दिग्गज भी है जिन्हों ने मुनिसिपल्टी के सभापति पद को गौरव प्रदान किया, ईमानदारी व निष्ठा से शहर के भले के लिए, विकास के लिए कार्य किया। और ये सब उन्होंने पैसा बनाने के लिए नहीं बल्कि उल्टा अपने अमूल्य समय में से समय निकालकर अपना योगदान दिया। कहने की ज़रूरत नहीं की आज इन पदों के क्या मायने हैँ?
चूँकि सफाई एक बहुत बड़ी चुनौती है तो क्यों न हम जागरूक मित्र इस विषय पर चर्चा करने के बजाय कुछ ठोस कार्य करने का बीड़ा उठायें?
डॉ अशोक मित्तल।