Tuesday, February 16, 2016

मातृभूमि के वीरों और शहीदों को समर्पित! पञ्च तत्वों में से एक – पानी! कहीं भी हो यदि हिलेगा तो छलकेगा और टपकेगा या गिरेगा! हमारे शरीर का पानी भी संवेदनाओं के स्पंदन से हिल जाता है, हिलता है तो छलकता है और आंसू बन कर टपकता भी है!! कहते हैं पानी भी जीवंत है.

मातृभूमि के वीरों और शहीदों को समर्पित!
पञ्च तत्वों में से एक – पानी! कहीं भी हो यदि हिलेगा तो छलकेगा और टपकेगा या गिरेगा! हमारे शरीर का पानी भी संवेदनाओं के स्पंदन से हिल जाता है, हिलता है तो छलकता है और आंसू बन कर टपकता भी है!! कहते हैं पानी भी जीवंत है.
ये इस सृष्टि का नियम है की पानी का उपरी तल हमेशा समतल रहता है, पानी से भरे पात्र की चाहे कोई भी स्थिति हो. समंदर, झील, तालाब, टंकी, बाल्टी, गिलास या किसी भी अन्य पात्र में पानी भरा है और वो पात्र यदि हिलता है, भूकंप से समंदर का जल और हाथों के कम्पन से भरे गिलास का पानी जरूर हिलेगा, छलकेगा और फैलेगा.
मनुष्य शरीर में भी ७०% पानी है. हमारे शरीर का पानी भी संवेदनाओं के स्पंदन से हिलता है, हिलता है तो छलकता है और टपकता भी है, आँखों की निचली पलक के किनारे तक भर कर गिर जाता है आंसू बन कर.
लता मंगेशकर का गाया अमर गीत “ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भरलो पानी“ जब कभी भी आप ध्यान से सुनते होंगे खासकर स्वतन्त्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर तो ज़रूर से इस नगमे के स्पंदनों से आप की भी आँखों का पानी उन वीरों की शहादत को याद करके ज़रूर छलक जाता होगा. मातृभूमि के प्रति जो श्रद्धा, प्यार, सम्मान है हमारे भीतर उसे जागृत कर देता है ये गीत. भारत माता के वीर सपूत अपनी जान देकर हमारी रक्षा में जुटे रहते हैं, रात और दिन, माइनस चालीस से प्लस अडतालीस डिग्री तापमान पर भी.
जहाँ एक ओर देश भक्ति के ऐसे ऐसे गीत हैं, देश पर मर मिटने वालों की दास्तान है वहीँ दूसरी ओर ये क्या हो गया है मेरे देश में? अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर देश द्रोह के सुर. देश के गद्दारों द्वारा लगते जिंदाबाद के नारे. जिसमे न सिर्फ जे एन यु के छात्र बल्कि देश के कुछ एक नेता भी शामिल हो गए हैं.
“खुश रहना देश के प्यारों, अब हम तो सफ़र करते हैं” गीत के आखरी पंक्ति में जहाँ एक वीर देशवासियों की खुशहाली की दुआ करते करते ज़िन्दगी से अलविदा कह रहा है, वहीँ ये कुछ एक नेता अपनी जुबां से देश द्रोह के स्वर में राजनीतिक रोटियाँ सेक रहे हैं. क्या यही राजनीति है? क्या यही देश भक्ति है? क्या इसी के वास्ते एक वीर हँसते हँसते अपनी शहादत, अपनी कुर्बानी देता है?
इस छोटे लेकिन हम सभी की भावनाओं से ओत प्रोत ब्लॉग को में सभी सच्चे देश प्रेमियों को समर्पित कर रहा हूँ. मुमकिन है कि आप में से कई लिखने या बोलने में स्वयं को असमर्थ महसूस करते हों, पर मेरे ब्लॉग को पड़ने के बाद यदि इन विचारों से  सहमत हो तो कृपया, शहीदों को श्रध्दा स्वरुप अपनी प्रतिक्रया ज़रूर व्यक्त करें, भले ही शब्द एक आध ही हो या सिम्बल.
जय हिन्द.

डॉ. अशोक मित्तल 16 फ़रवरी, 2016 

Monday, February 15, 2016

कल्पना से परे है सफ़ेद रण का द्रश्य !

कल्पना से परे है सफ़ेद रण का द्रश्य !१. ३१ जनवरी को हमें कच्छ के सफ़ेद रण जाने का सौभाग्य मिला, इस यात्रा के माध्यम बने मेरे मित्र दीपक विधानी के पुत्र, पुत्रवधू व नन्हा बच्चा आरू. गांधीधाम से करीब २०० km की दूरी २.३० घंटे में कार से तय की. गंतव्य पर पहुँचने के बहुत पहले ही करीब ६० km से हमें स्वागत द्वार नज़र आने लगे, जिन पर सफ़ेद रण के ब्रांड एम्बेसडर अमिताभ बच्चन के पोस्टर विभिन्न मुद्राओं में हमें आकर्षित कर रहे थे.
२. जब सफ़ेद रण के मुख्य द्वार से अन्दर पहुंचे तो एक बहुत ही विशाल शहरनुमा नज़ारा दिखा जहाँ सब कुछ टेंटों से बनाया हुआ था, पक्का निर्माण कहीं नहीं था. रहने के लिए ५०००/ प्रति दिन से लेकर एक लाख रुपए प्रति दिन के फाइव स्टार टेंट भी उपलब्ध थे. बड़े बड़े बाज़ार दोनों ओर बने थे जहाँ हाथ करघा, क्राफ्ट, आर्ट, बैंक, ऐ.टी.एम्, खाने पीने के स्टाल, आकर्षक झांकियां जिनमे स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया आदि के सन्देश थे. इनमें सबसे आकर्षक सीन था महात्मा गाँधी की मूर्ति को हाथ में झाड़ू लेकर सफाई करते हुए दिखाया जाना.
कल्पना से परे है सफ़ेद रण का द्रश्य !
चूँकि कच्छ के इस सफ़ेद रण को जाने के वास्ते सिर्फ २ ही महीनों का वक़्त होता है, बाकी समय यहाँ समुद्र का पानी वापस भर जाता है, अतः यहाँ सब कुछ कच्चे निर्माण की रूप में था, लेकिन था अतुलनीय और अकल्पनीय.
कार पार्किंग के बाद करीब २ km तक पैदल या घुड सवारी या ऊंट गाडी द्वारा सफ़ेद रण तक पहूँचने के तीन विकल्प थे हमारे पास. हमने ऊँट गाड़ी को चुना. बच्चों और बूदों की सांगत में हां हूँ करते करते लास्ट पॉइंट पर जब उतरे और जमीन पर पैर रखे तो एहसास हुआ की हम रेत के समंदर में नहीं, पानी के समंदर में नहीं बल्कि नमक के समंदर में पहुँच गए थे. बहुत कौतिहल जाग रहा था मन में जब में अपने जूतों से उस नमक को थोक थोक कर, उछाल उछाल कर निश्चय कर लेना चाहता था की ये वाकई नमक ही है. जब कोई शक नहीं बचा की वो नमक ही है तो भी विश्वास नहीं हो रहा था.













कल्पना से परे है सफ़ेद रण का द्रश्य !
३. सेंकडों लोग वहां अलग अलग ग्रुप्स में आये हुए थे, बच्चे भाग दौड़ कर रहे थे, कोई पतंगबाजी, कोई बेडमिन्टन, कोई दरी बिछा कर ताश तो कोई वहां के लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत लोकगीतों, नृत्यों का आनंद ले रहे थे. हम प्रकर्ति के अनुपम दृश्यों को निहारने व केमरे में उन्हें किस कर लेने में मशगुल थे.
अमिताभ बच्चन के एक पोस्टर में जिसमे वे बांये हाथ में लकड़ी लिए, मुस्कुराते हुए दाहिने हाथ से पधारो सा वाला एक्शन करते दिखे तो मुझे एक शरारत सूझी, मैंने आइडीया से अपना दाहिना हाथ उनके लकड़ी वाले हाथ पर रख कर नविन को क्लीक करने को कहा. अमिताभ की फोटो के संग मेरी भी एक याद दाश्त फोटो खिंच गयी.
एक जगह रॉयल एनफील्ड का वो जुगाड़ भी दिख गया जिसे अमिताभ ने शूटिंग के दोरान चलाया था, हम दोनों ने भी उसकी सवारी का लुत्फ़ उठाया जिसे नवीन ने अपने केमरे से क्लिक किया और ईमेल से मुझे भेज दिया. ये फोटो मुझे इतना अधिक पसंद आया की मैंने अपना facebook स्टेटस अपडेट कर पुराने राजस्थानी जुगाड़ वाले फोटो की जगह इससे रीप्लेस कर दिया. ये फोटो वो सारे भाव, सुकून, ख़ुशी बयान कर रही है जो हमें वहाँ मेहसूस हो रहे थे और जिन्हें शब्दों में समेटना नामुमकिन है.
कल्पना से परे है सफ़ेद रण का द्रश्य !
४. दिन ढल रहा था, मन लौटने को नहीं मान रहा था पर उधर सूरज ढलते ढलते सुदूर कहीं नमक के क्षितिज में डूब रहा था, मन ही मन नवीन, रानू, आरू के प्यारे साथ को धन्यवाद देते हुए और सफ़ेद रण को अलविदा कहते, बाय बाय करते हम पुनः गांधीधाम के ढाई घंटे के सफ़र के लिए कार पार्किंग की ओर कदम बड़ाने लगे. मन में ये विचार चल रहे थे की अजमेर पहुँचते ही सभी परिवार के सदस्यों व मित्रों से इन सुखद एहसासों को, प्रकर्ति के इन अनमोल खजानों से मिली अनुभूति को शेयर करूंगा. लेकिन लोटते ही वाइरल फीवर से पीड़ित होने के कारण आज में आप सब को ये संस्मरण अर्पित करता हूँ, आप सब भी नेचर के भिन्न भिन्न रूपों का समय समय पर आनंद लेते रहें और स्वयं में नयी ऊर्जा का संचार करते रहें.
इस क्रम में अजमेर वासी एक बार सुबह जरूर से चोपाटी, बारादरी, राम प्रसाद घाट या रीजनल कालेज वाली नयी चोपाटी से आनासागर के विभिन्न मनोरम दृश्य ज़रूर देखें.

Monday, February 8, 2016

सावधान! भाग 8 “जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन”!!

सावधान! भाग 8 “जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन”!!
स्टेरॉयड के दिन प्रतिदिन बड़ते जा रहे बेतरतीब उपयोग पर डॉ. कपिल शर्मा जो पुष्कर रोड स्थित मित्तल अस्पताल में गेस्ट्रोएंटेरोलोजिस्ट है, ने भी चिंता जताते हुए अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की जिसमें उन्होंने बताया की इस औषधी को या तो कुछ असाध्य रोगों में शोर्ट कोर्स के रूप में काम में लिया जाता है या फिर मरीज को मौत के मुंह से वापस लाते समय. डॉ. कपिल ने इस से उत्पन्न होने वाले उन सभी खतरों की भी बात की जिनके बारे में हम पिछले ब्लोग्स में बात कर चुके हैं.
याने कुल मिला कर हर कोई चिकित्सा विशेषग्य की स्तेरोइड्स के उपयोग व खतरों के बाबत एक ही राय है, और पूरा मेडिकल वर्ग चिंतित भी है की मरीज पहले से ही इनका सेवन हर छोटी छोटी बीमारी में कैसे कर लेता है?? तो फिर सवाल ये उठता है की ऐसी दवा जो शीड्युल-एच में आती है, वो दवा लूज़ फॉर्म में १००-१०० के पैक में क्यों उपलब्ध है. कौन सी कम्पनीयां इन्हें बनाती हैं बिना हर गोली को पत्ते याने फॉयल में पैक किये बिना, इनका नाम अंकित किये बिना.जब हर गोली पर दवा का नाम अंकित होना कानूनन अनिवार्य है तो फिर ये बिना नाम की गोलियां क्यों धड़ल्ले से मार्किट में बिक रही हैं. इन्हें कोई भी नीम हाकिम कैसे हासिल कर लेते हैं, वो भी बिना ड्रग लाइसेंस के. क्यों इन के खतरों से मरीज को अवगत नहीं कराया जाता? आगे के ब्लॉग में हम सीनियर फिजिशियन डॉ. एस के अरोड़ा, रिटायर्ड प्रोफ़ेसर जे.एल.एन मेडिकल द्वारा दिए गए कॉमेंट्स पर चर्चा करेंगे, उसके बाद ड्रग्स एंड कास्मेटिक एक्ट तथा मैजिक रेमेडीज एक्ट/ जादुई औषधि नियम के बारे में भी चर्चा करेंगे जिनकी इस संधर्भ में बहुत ही अहम् भूमिका है.
डॉ.अशोक mittal ०८-०२-२०१६ drashokmittal.blogger.in


Thursday, February 4, 2016

दोष चिकित्सा व्यवस्था या तकनीक का नहीं, अपितु सामाजिक सोच का है

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[9:18PM, 03/02/2016] Ashok Mittal: [7:19PM, 03/02/2016] +91 94609 00733:
सिंघल सर ने कहा:-
👏 डा. अशोक मित्तल,
दोष चिकित्सा व्यवस्था या तकनीक का नहीं, अपितु सामाजिक सोच का है, जिसमें अभी भी पुरुष को प्रधानता दी जाती है। अनेक परिवारों में आज भी लड़के और लड़कियों के बीच भेदभाव रवैया देखने को मिलता है।
[9:02PM, 03/02/2016] Ashok Mittal: 👏सिंघल सर।
ये सोच ही है जड़ इस बुराई की।
[9:08PM, 03/02/2016] Rajkumar Nahar Smart City: ने लिखा:-
महिलाओं को यह समाज आज भी, पहले से कहीं ज्यादा, कमतर समझा जा रहा है। हमारी नारी के सम्बध में दोहरी सोच है। नारी को देवी रुप में पूजते हैं तथा आम जीवन में भोग्या मानते हैं। ढोर पशु और नारी को ताडन योग्य मान जाप करते हैं। यदि राज नेता एक पहल कर लोक सभा/राज्य सभा/विधान सभा आदि में बराबर का नम्बर भी दे दे तो नारी शक्ति का मान स्वतः बढ जायेगा। कन्या भ्रूण हत्या होती ही इसलिये है कि कन्या को पराया धन कह कर उसके जन्म लेते ही रट लगाना चालू हो जाता है। संपत्ति में ऊसका शादी के बाद बराबर का अधिकार legal कर देने से भी समस्या पर काबू पाया जा सकता है। मात्र दो पुत्रियों वाले परिवारों को हर क्षेत्र में फायदा देने से भी फर्क पडेगा। सदियों से बनी मान्यताओं को खत्म करने में समय जरूर लग सकता है पर ईमानदार कोशिश तो करनी पडेगी। ऐसे समाज जिनमें यह समस्या ज्यादा है वहाँ विशेष कोशिश करनी पडेगी। दुर्भाग्य से भारतीय समाज hypocrite society है और हम सब कहीं न कहीं थोडे या ज्यादा जिम्मेदार हैं। महिलाओं का सम्मान करना अपने घरों से चालू करना पडेगा। क्रमशः।
[9:14PM, 03/02/2016] Ashok Mittal: 👏नाहर सर।इस समस्या की सबसे मूल जड़ ही यही है जो आपने फरमाया। इसे दरकिनार कर सब यही उम्मीद लगाए बैठे हैं की PCP&DT Act अकेला ही इस लिंग अनुपात को सही कर देगा।
[9:23PM, 03/02/2016] Ashok Mittal: [7:13PM, 03/02/2016] Gurjinder Singh Virdi Press: Bahut sahi likha hai Mittal sir... gahan vicharneey bindu hai aur aapka tark ekdum sahi hai... samaj ka drishtikon sudhaarne ki jaroorat hai, technology ko band karne ya kanoon banaane se maansikta nahin sudhar jaayegi...uss par kaam karne ki zaroorat hai,
[7:26PM, 03/02/2016] Ashok Mittal:ने लिखा 👍👍
[9:18PM, 03/02/2016]
[10:35AM, 04/02/2016] Shashi Pyar Ji: आपने बिलकुल सत्य लिखा है।मैं आपकी बात से सहमत हूँ।हमारे भारतीय समाज मैं जो औरतो के प्रति पुरुषों के मन मैं संकुचित मानसिकता है उसे दूर करना बहुत आवश्यक है। सारा दोष चिकित्सा विभाग पर डालना उचित नहीं है। कई परिवारों मैं देखने और सुनने को मिलता है की आये दिन औरतों के साथ मारपीट की जाती है,उन्हें प्रताड़ित किया जाता है।बेटी के जन्म के साथ ही माँ बेटी दोनों को कोसा जाता है।कई समाज व परिवारो मैं जन्म के साथ ही कन्या को मार दिया जाता है।यह सब इसका बहुत बड़ा कारन है। इस मानसिकता को बदलने की शुरुआत हमारे परिवारो से ही करनी होगी।जब तक पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक सुधार होना सम्भव नहीं है।
[10:36AM, 04/02/2016] Shashi Pyar Ji:
Bhaiyya aapke blog ka link send kar do..main uspe apne reply post kar dungi
[10:47AM, 04/02/2016] Ashok Mittal: http://drashokmittal.blogspot.com/
[2:17PM, 04/02/2016] Ashok Mittal: 👍👍

मेल/ फ़ीमेल रेश्यो के गिरने का मूल कारण क्या सोनोग्राफी ही है ? ये प्रश्न विचारणीय है।

मेल/ फ़ीमेल रेश्यो के गिरने का मूल कारण क्या सोनोग्राफी ही है ? ये प्रश्न विचारणीय है। जो डॉक्टर कन्या भ्रूण हत्या में सहायता करते हैं वे और उनकी सोनोग्राफी निश्चित तौर पर कानून के गुनहगार हैं। यहां ये भी ध्यान देने योग्य है की पूरा चिकित्सा समुदाय इस बुराई में लिप्त नहीं है, बल्कि स्वयं सतत चिंतनशील व अपने दायित्व के प्रति सजग भी है।
लेकिन क्या इस M:F अनुपात के घटने का कारण भ्रूण हत्या तक ही सीमित है या जन्म के बाद कन्या शिशु की हत्या होना भी है? या बीमार कन्या का इलाज़ न कराना जिससे की वो मौत के मुह में चली जाये, इन पर भी ध्यान देना आवश्यक है।ख़ास तौर से ग्रामीण परिवेश में जहाँ दूर दूर तक लोगों को सोनोग्राफी नसीब तक नहीं होती।
ये एक सामाजिक बुराई है जो सदियों से इस देश में व्याप्त है।इस बुराई का दोष सिर्फ और सिर्फ एक मेडिकल तकनीक पर डाल कर हम शायद बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं। महिला की निजता का अधिकार, एबॉर्शन का अधिकार, आदि को नजर अंदाज़ न करते हुए एक सभ्य समाज को खुले मन से गहन विचार जरुर करना चाहिए की इस घटते लिंगनुपात के और क्या क्या कारण हैं जिनके रहते ये अनुपात घटता ही जा रहा है।
इस व्यापक सामाजिक कु सोच और गहराई तक व्याप्त बुराई की जड़ों को हम और सीचने की भयंकर भूल कर रहे हैं, यदि पूरा दोष चिकित्सा व्यवस्था पर मांड कर अन्य कारणों को भूल जाते हैं तो।
डॉ. अशोक मित्तल। मेडीकल जर्नलिस्ट।

Monday, February 1, 2016

केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के बयान का स्वागत: आशा है की कानून मंत्रालय व स्वास्थ्य मंत्रालय गौर फरमाएंगे।

केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के बयान का स्वागत: आशा है की कानून मंत्रालय व स्वास्थ्य मंत्रालय गौर फरमाएंगे।
केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री श्रीमति मेनका गांधी का ये बयान की "भ्रूण के लिंग का परिक्षण बेन के बजाय अनिवार्य हो जिससे की जन्म के दौरान व जन्म पश्चात उसकी ट्रेकिंग हो सके" इस विचार धारा को सोशल मीडिया पर मेडिकल समुदाय द्वारा काफी अरसे से अपील, लेख, आदि लगातार आ रहे हैं। लिंग परिक्षण से जुड़े PCP&DT  कानून में व्याप्त कमियों का खामियाजा उन मरीजों को ही सबसे अधिक उठाना पड़ रहा है जिन्हें छोटी मोटी बीमारियों के निदान हेतु सोनोग्राफी करानी होती है। दुनियाभर की कागज़ी कार्यवाही, आई ड़ी प्रूफ, तरह तरह के फॉर्म भरने का पचड़ा और उसके बाद बात-बात में डॉक्टरों के विरुद्ध दर्ज होते कोर्ट केस, फॉर्म में मामूली सी कमी पर भी मशीन का सीज़ कर देना व क्लिनिक के ताला बंदी कर देना, जैसी बीमारियों के चलते चिकित्सा समुदाय के लिए भी डायग्नोस्टिक लेब चलाना एक सर दर्द से कम नहीं है।
पिछले माह मुम्बई में व उससे पूर्व सम्पूर्ण पुणे जिले के सोनोग्राफी सेण्टर इन खामियों के विरोध में दो-दो, तीन तीन की हड़ताल पर रह कर धरने व मौन प्रदर्शन भी कर चुके है। यही नहीं दिल्ली सहित अन्य राज्यों से भी इस कानून में संशोधन करने वास्ते तीखे स्वर उभर रहे है। ऐसे में एक केंद्रीय मंत्री का बयान मरीजों व कन्या भ्रूण के हित में आशा की नयी किरण  ले कर आया है।
डॉ. अशोक मित्तल, मेडिकल जर्नलिस्ट, drashokmittal. blogger