Sunday, January 31, 2016

शमशान में लकड़ियों के बजाय गैस का बर्नर किया समाज को अर्पित : अजमेर के दीपक लाल चाँद विधानी परिवार व लायंस क्लूं की अनूठी पहल.

आज ३१ जनवरी को गांधीधाम में एक अनुकरणीय समाज सेवा के कार्य से रूबरू कराया  दीपक लाल चाँद विधानी परिवार ने. लायंस क्लब, गांधीधाम की प्रेरणा से इस प्रोजेक्ट की सम्पूर्ण लागत करीब २० लाख रूपए विधानी परिवार ने वहन  किये.
इस प्रोजेक्ट से जहाँ एक ओर लकड़ी जलने व जंगल कटने से बचत करने  में पर्यावरण की मदद होगी एवं  धुएं से वायु में होता प्रदुषण रुकेगा, वहीँ इस विधि से यह क्रिया कर्म सिर्फ ४५ मिनट में पूर्ण हो जाएगा, जिसमें अमूमन ३ - ४ घंटे का समय लग ही जाता है, और यदि लकडिया गीली हुई तो फिर घी, शक्कर उंड़ेल उंड़ेल कर दुनिया भर की मशक्कत करनी पड़ती है सो अलग.  
इस समाज सेवा के कार्य में बाकायदा एक हवादार  हाल मय कुरिसियों, पंखे, लाइटें आदि फिटिंग सहित, जिसमे लोग आराम से बैठ सकें, बाग़ बगीचा, मंदिर, साफ़ सुथरे टॉयलेट्स भी देखने को मिले. जो एक उदार परिवार और लायंस जैसी संस्था की सोच का परिणाम है।
इस प्रोजेक्ट में एक गैस का एक चेंबर है।  जिसमे डेड बॉडी एक ट्रॉली पे रख कर एक  गुफा में जो देखने में एम.आर.आई/ सी टी वाली टनल जैसी दिखती है, में  रख कर शटर बंद करने के बाद गैस से फायर किया जाता है जिसमें सिर्फ एक गैस सिलिंडर काम में आता है।  हालांकि प्रेशर बनाने के लिए सात सिलेंडर एक साथ लगाए जाते हैं। कुल  १२०० रुपए लागत की २० किलो कोमर्शियल  सिलेँडर की गैस काम में आती है। जिसके एवज में परिजनों से  मदद  स्वरुप कुछ भी आर्थिक रूप में नहीं स्वीकार करने का प्रावधान है।

ऐसे  स्वच्छ, शांति दायक मुक्ति धाम से जब आत्मा शरीर छोड़ने के बाद अपने  वैकुंठ धाम की यात्रा के लिए प्रस्थान करेंगी तो बड़ा सकूँन लेकर और विधानी परिवार को दुआएं देती हुई परम पिता परमेश्वर के दरबार में पहुंचेंगी।

दीपक विधानी, पुष्कर घाटी के आरम्भ पर संचालित, अजमेर से कुछ वर्ष पूर्व ही अपने पोल्ट्री के कारोबार को समेट  कर गांधीधाम शिफ्ट हो गए थे। अजमेर के लोग उन्हें एक उदार व सदा ओरों की मदद के लिए तत्पर एक अच्छे नागरिक व दोस्त के रूप में आज भी याद करते है।

इतने प्रेरणादायी  समाज सेवा के इस कार्य का गवाह बनने के बाद मैं अपने उदगार  लिखने से नहीं रोक पाया, और इस शुभ इच्छा से अपना यह ब्लॉग समाज को अर्पित कर रहा हूँ की अन्य शहरों में भी नागरिक प्रेरित हों और मरणोपरांत हम अपने मित्रों, परिजनों को जब मुक्ति धाम ले जाएँ तो हम सब को ही नहीं बल्कि दिवंगत आत्मा को भी शांति और सकूँन महसूस हो।

डॉ. अशोक मित्तल, मेडिकल जर्नलिस्ट
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Dr. Ashok Mittal
Director & Chief Orthopedic Surgeon
Old Mittal Hospital
249 A, Main Road, Vaishali Nagar, Ajmer 305006
Ph. 0145 2970272

Sunday, January 24, 2016

सावधान! भाग (४) जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!

सावधान! भाग (४) जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!
औषधि वितरण और कन्ट्रोल से जुड़े जानकारों का क्या कहना है? आइये जानते हैं.
5         असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर श्री ईश्वर सिंह यादव ने बताया की जितनी भी शीड्युल-एच श्रेणी की औषधीयाँ हैं उन्हें सिर्फ डॉक्टर की हस्ताक्षर व तारिख डली पर्ची पर ही दिया जा सकता है. बिना पर्ची के इन्हें इश्यु करना कानून के विरूद्ध है. बिना बिल इनकी खरीद और बिक्री कानूनन जुर्म है. अभी हाल ही में उनके विभाग द्वारा की गयी छापामार कार्यवाही में बिना बिल के पकड़ी गयी नींद की गोलियों वाले काण्ड का भी उन्होंने हवाला दिया..
6         दवाओं के एक होलसेल विक्रेता ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया की उनको तो सिर्फ मेडिकल स्टोर वालों को उनके ड्रग लाइसेंस नंबर पर या डॉक्टर्स को उनके मेडिकल काऊंसिल के रजिस्ट्रेशन नंबर पर दवाएं इशू करनी होती है. वे इन औषधियों को वाउचर बना कर एवं बिल रेज़ करके ही देते हैं, तथा खुदरा रूप में नहीं बल्कि हमेशा होलसेल पेक में ही बेचते हैं. बिना बिल के वे कभी भी कोई दवा न तो  देते हैं, और न ही वे किसी से बिना बिल के खरीदते हैं.
धीमी आवाज में ये भी कहा की  हालांकि कई दवाओं में बहुत कम मुनाफा होता है. जबकि ऐसी कई दवाएं यदि बिना बिल के खरीदी जाएँ और बिना बिल के ही ग्राहक को बेच दी जावें तो कई गुना मुनाफा भी और ड्रग निरिक्षण में फंसने का भी प्रूफ नहीं होता, क्योंकि रिकॉर्ड ही नहीं होता है. लेकिन एसा कभी नहीं करना चाहिए.
क्या आपकी जानकारी में कोई दवा विक्रेता है जो ऐसा अपराध करता है?? ये पूछने पर वे खामोश हो गए.
अन्य डॉक्टर्स क्या कहते हैं स्टेरॉयड के बारे में??
7         प्राइवेट प्रेक्टिस कर रहे डॉ. विजय कालरा ने बताया की स्टेरॉयड के हानिकारक परिणामों की वजह से वे अपनी प्रेक्टिस में कभी भी इनका दुरूपयोग नहीं करते हालांकि इनके राम बाण रुपी असर का गलत फायदा उठाकर कुछ नीम हाकिम इनकी पुडिया या पाउडर बना कर दे देते हैं.
8         प्रसिद्ध नेत्र विशेषग्य डॉ.नीरज खूंगर ने बताया की डेक्सामीथासोन व बीटामीथासोन के आँखों में उपयोग  करने वाले मरीज कम उम्र में ही काला पानी व मोतियाबिंद की शिकायत से अंधेपन का शिकार होकर कभी कभी उनके पास आते रहते हैं. आँखे आना, पानी बहना, आँखें लाल होना एक साधारण रोज़ मर्रा की बिमारी में स्टेरॉयड ड्रॉप्स का डालना अंधेपन को बेवजह आमंत्रित करना है.
उन्होंने कहा की जहाँ वास्तव में ज़रुरत हो, सिर्फ वहीं इनका उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से करना चाहिए व हर कोर्स के बाद टेपर-ऑफ कर देना चाहिए.
9         जे.एल.एन. मेडिकल कॉलेज के सीनीयर स्पेशलिस्ट डॉ. माधव गोपाल अग्रवाल ने स्टेरॉयड से हड्डियों का गल जाना, कुशिंग-सिंड्रोम से मुंह व कूल्हों की सूजन, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना आदि इफेक्ट्स पर चिंता जताते हुए अपील की है की इनका न्यायपूर्ण व उचित उपयोग करना चाहिए. हाँ आपातकालीन स्थिति में ये औषधी राम बाण साबित होती है व चरम रोगों एवम् दमा में भी इनका सेवन कारगर व न्यायोचित है.
अभी कुछ और स्पेशलिस्टों की राय के अलावा अन्य महत्वपूर्ण जानकारी शेष है. मैं उन सबके साथ फिर आपकी सेवा में उपस्थित होता हूँ.
डॉ.अशोक मित्तल, २४ जनवरी २०१६, Medical Journalist

“Dr. Ashok Mittal” < mittal.dr@gmail.com>

Saturday, January 23, 2016

सावधान! भाग (४) जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!

सावधान! भाग (४) जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!
अगले ब्लॉग में कुछ और विशेषज्ञों की राय पर हम गौर फरमाएंगे. तब तक मैं आपको स्टेरोइड्स के उन भयंकर दुष्परिणामों से अवगत कराता हूँ, जिन्हें समझने के बाद इस ब्लॉग के लिखे जाने की महत्ता का आप अंदाजा लगा पाएंगे.
स्टेरोइड्स के साइड इफ्फेक्ट:
१.      मानसिक: एड्रीनलीन की संवेदन शक्ति कई गुना अधिक हो जाने से दिमाग पर बुरा असर होने पर व्यक्ति अत्यधिक जिज्ञासु, कौतुहल पूर्ण, तनाव ग्रस्त व पागल पन का शिकार हो सकता है. नींद में व्यवधान व रात्रि में सोने के बजाय अत्यधिक उर्जावान होने की फीलिंग आ सकती है.
२.      दिल: शरीर में पानी के जरुरत से ज्यादा रुकाव से हाई ब्लड प्रेशर
३.       फेट/चर्बी पूरे शरीर से पिघल कर चेहरे पर व कूल्हों पर जा कर जमा हो जाने की वजह से फुटबॉल जैसा चेहरा व कुल्हे फूल कर भेंस के कूबड़ जैसे लगने लगते हैं.
४.      एमिनो एसिड को ग्लोकोज़ में परिवर्तित करने की क्षमता के कारण स्टेरॉयड खून में शक्कर की मात्रा बड़ा कर डायबटीज़ की बीमारी को जन्म दे सकते है.
५.      बच्चों में इन के उपयोग से उनकी लम्बाई अप्रत्याशित रूप से बड सकती है.
६.      पाचन तंत्र को बिगाड सकते हैं, एसिडिटी, अल्सर, आँतों से खून का रिसाव कर सकते है.
७.      नेत्रों की रोशनी गुल हो सकती है केटरेक्ट व रेटिनोपेथी होने से.
८.      रोग प्रतिरोधक क्षमता के कमज़ोर होने से तरह तरह के संक्रमण हो सकते है.
९.      गर्भवती माता के पेट में पल रहे भ्रूण में विकृती पैदा कर सकते हैं.
१०.  मदिरा पान करने वालों को जिस तरह से अल्कोहल एडिक्शन हो जाता है बिलकुल वैसा ही स्टेरॉयड के सेवन करने वालों को स्टेरॉयड एडिक्शन हो सकता है. इसे छुडाने / डी-एडिक्शन  के प्रयास में ठीक वैसी ही कठिनाई आ सकती है व लक्षण हो सकते हैं जैसे की अल्कोहल छुड़ाने के वक़्त आती है.
 याने इन के बेतरतीब प्रयोग के बाद जब मरीज को इस दवा से मुक्ति दिलाने की कोशीश की जाती है तो अच्छे से अच्छे चिकित्सकों के भी पसीने छूट जाते हैं. दवा दो तो मरण और न दो तो भी मरण.
स्टेरॉयड का सबसे अधिक दुरुपयोग अक्सर शारीरिक शक्ति बढाने, लम्बाई बढाने, शरीर का वज़न बढाने आदि विभिन्न अपेक्षाओं की पूर्ती हेतु स्पोर्टस-मेन, बच्चों व युवाओं में किया जाता है.   
स्टेरॉयड के बारे में अभी बहुत सारी जानकारी शेष है, कुछ और विशेषज्ञों की टिप्पणियाँ भी बाकी हैं. इन सब को आपके समक्ष पेश करने हेतु अगले ब्लॉग में हाज़िर होता हूँ.

डॉ.अशोक मित्तल, २३ जनवरी २०१६ 

Friday, January 22, 2016

सावधान! भाग-3ब: जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!

सावधान! भाग-3ब:  जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!

विशेषज्ञों का क्या कहना है, स्टेरॉयड के बाबत ???
अब आगे बढ़ने से पहले ज़रा गौर कर लें कि मेडिकल समुदाय के विभिन्न विशेषज्ञों का क्या कहना है???
१. कचहरी  रोड स्थित क्षेत्रपाल आई हॉस्पिटल के नेत्र विशेषज्ञ डॉ. अरुण क्षेत्रपाल ने बताया कि ये दवाएं शीड्यूल-एच ड्रग होती हैं. याने की बिना डॉ. की पर्ची के इन्हें बेचा नहीं जा सकता तथा हर बार दवा खरीदने के लिए उसी दिन की तारीख में डॉ. के दस्तखत वाला नया पर्चा होना कानूनन जरूरी है. बावजूद इसके ये बाज़ार में खुले आम आसानी से मिलती हैं. डॉ. अरुण ने आगे कहा की:-
धूल-मिटटी, धूंआ और धूप की अधिकता के कारण आँखों में एलर्जी एक कोमन समस्या है जिस की वज़ह से आँख से पानी आना, ऑंखें लाल होना, खुजली होना आम बात है. पीड़ित व्यक्ति केमिस्ट के पास जाता है और केमिस्ट उसे स्टेरॉयड की आई ड्राप दे देता है जो बहुत तेजी से आराम पहुंचाती है. जबकि ऐसे में साधारण आई ड्रॉप्स भी उपयुक्त होती हैं.  चूँकि धूल-मिटटी, धूंआ और धूप से होने वाली ये एलर्जी बार-बार होती रहती है और हर बार उसे स्टेरॉयड की आई ड्राप के डालने से उसे आराम हो जाता है तो परिणाम स्वरुप उसे स्टेरॉयड-ग्लोकोमा व स्टेरॉयड-इनड्युस-अंधापन हो जाता है. 
डॉ. अरुण ने व्यथित मन से बताया की 20 जनवरी को ही एक 25 वर्ष का युवा आँख की रौशनी चली जाने की शिकायत लेकर उनके पास शेखावाटी से उपचार हेतु आया था. गहन जांच व पूछताछ से स्टेरॉयड ड्रॉप्स का लगातार उपयोग में लेना सामने आया. याने स्टेरॉयड ड्रॉप्स के अन्धाधुंध उपयोग से इस युवा को अपनी आँखों की रोशनी गवानी पड़ी.

डॉ. अरुण ने आगे बताया की किडनी फेल, अनियंत्रित गठिया, फेफड़ों की ILD आदि जीवन-मरण जैसी परिस्थिति में तो इन स्टेरॉयड का उपयोग टेबलेट, इंजेकशन आदि रूप में उचित है भले ही उसे स्टेरॉयड-इनड्युस-केटरेक्ट या ग्लोकोमा ही क्यों न हो जाये. क्योंकि इन बीमारियों में जीवन बचाना प्राथमिकता होती है.

2. जे.एल.एन. मेडिकल कॉलेज में सेवारत वरिष्ठ कान-नाक-गला विशेषग्य डॉ. भास्कर गोपाल रीजोनिया ने बताया की उन्हें अक्सर लेकिन सावधानी पूर्वक इस दवा का कई बार उपयोग करना पड़ता है, लेकिन वे बहुत कम डोज़ में अंश कालिक ही देते हैं, उसमे भी गोली के बजाय नेज़ल स्प्रे देना उनकी प्राथमिकता होती है. 
ये भी कहा की मरीज अक्सर डॉ. को फीस न देनी पड़े या बार बार अस्पताल के चक्कर न काटने पड़ें, यह सोच कर उसी पुरानी पर्ची से बार बार खरीद कर, इनका  सेवन  कर कर के स्वयं का ही नुक्सान करता रहता है. याने फीस बचाने के चक्कर में कई गुना अधिक संकट में धकेलता है अपने आप को.. 
डॉ. रीजोनिया ने ये भी कहा की  केमिस्ट को एक पर्ची पर लिखी दवा का कोर्स एक बार ही देना चाहिए. डॉ. फिर से नवीन तारीख की सील व हस्ताक्षर युक्त नया पर्चा दे तो ही इन दवा को रीपीट करना चाहिए.

3. शहर के जाने माने इन्टरवेंशन कारडीर्ओलोजिस्ट डॉ. विवेक माथुर जो एन्जीओग्राफी व एनजीओप्लास्टी में दक्ष हैं, ने अपने कमेंट्स में कहा की उनके विभाग में इन दवाओं को कोई रोल नहीं है, हाँ कभी कभार एन्जीओग्राफी के दौरान काम में ली जाने वाली डाई से या किसी ड्रग से यदि ऐनाफाईलेक्टिक रीएक्शन हो जाए तो ही स्टेरॉयड काम में लेने पड़ते हैं. लेकिन उन्हें तकलीफ उन केसेज़ में होती है जब मरीज हार्ट फेल याने LVF (Left Ventricular Failure), फेफड़ों में रुकावट याने COPD (Chronic Obstructive Pulmonary Disease) में पहले से ही स्टेरॉयड खा रहे होते हैं, वो भी बिना मरीज की जानकारी के, इससे उनका ब्लड प्रेशर अनियंत्रित  हो जाता है व लकवा होने का खतरा पैदा कर देता है तथा शरीर में पानी इकठ्ठा हो जाने से पेरों, टांगों व मुंह पर सूजन आ जाती है. 
डॉ. विवेक माथुर ने अपील की है की यदि हम चिकत्सा समुदाय के बंधू (याने नीम-हकीम, बंगाली डॉक्टर या योग्यता प्राप्त चिकित्सक जो भी हों) मरीज को स्टेरॉयड कार्ड जैसा कोई रेकोर्ड न भी दे पायें तो कम से कम इतना तो उसे जागरूक करें की आपको हम स्टेरॉयड दे रहे हैं जिनके क्या क्या नफे नुक्सान हैं.. और मरीज को भो चाहिए की यह जानकारी निश्चित तौर पर हर उस अगले चिकित्सक को जिसके  पास वो परामर्श के लिए जाता है, आगे होकर बताये की वो स्टेरॉयड का सेवन कब से, किस डोज़ में, और कितनी बार कर चुका है.
  
4. विजय ई.एन.टी होस्पीटल के विशेषज्ञ डॉ. विजय गक्खड  ने कहा की "उनके कान-नाक-गले के फील्ड में भी स्टेरॉयड का उपयोग होता है लेकिन पांच से सात दिन के लघु कोर्स व हलकी डोज़ के रूप में, वो भी तब की जब अन्य नॉन-स्टेरॉयड दवाओं का असर अपेक्षित न हो. जो लोग पहले से ही इन दवाओं का प्रयोग बिना डाक्टरी राय के, करने के बाद उनके पास आते हैं तो फिर हाई डोज़ व लम्बे समय तक  स्टेरॉयड दिए बिना रेस्पोंस नहीं आता है. जो और अधिक हानि कारक होता है." उन्होंने आह्वाहन किया की कोई भी इन दवाओं का सेवन बिना विशेषग्य चिकित्सक की राय के बगेर नहीं करे और अपना जीवन संकट में डालने से बचें."

शीडयूल-एच ड्रग में आने वाली स्टेरॉयड के खतरों से अवगत कराना, मैं एक चिकित्सक, शिक्षक, वरिष्ठ नागरिक व अब जर्नलिस्म में मास्टर्स डिग्री हासिल करने के बाद एक नवोदित मेडिकल जर्नलिस्ट के नाते अपने दायित्व का निर्वहन करता हुआ आपको समय समय पर आगे और जानकारी देता रहूंगा. हालांकि इस सम्पूर्ण जानकारी को सरल शब्दों में लिखना और आप तक अपनी भाषा में प्रेषित करना, जिससे की आप को समझ में आ जाए, मेरे लिए चुनौतीपूर्ण है.

शीडयूल-एच ड्रग जो की ड्रग्स एंड कोस्मेटीक्स रुल १९४५ के तहत एक "नियंत्रित- श्रेणी" की दवा है जिन्हें बिना डॉक्टर की पर्ची के ओवर-दा-काउंटर नहीं बेचा जा सकता है. फिर भी इनकी  बे-तरबीत बिक्री और उपयोग से जो खामियाजा समाज भुगत रहा है ये बहुत ही अफ़सोस की बात है.

अगले ब्लोग्स में और भी विशेषज्ञों की राय आनी अभी बाकी है जिन्हें आपकी सेवा में फिर पेश करूंगा. कृपया इंतज़ार करें.

डॉ. अशोक मित्तल, मेडिकल जर्नलिस्ट, २२ जनवरी २०१६ 


Thursday, January 21, 2016

सावधान! भाग-3अ: जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!

सावधान! भाग-3अ:  जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!
वैसे तो हर दवा का कुछ न कुछ रिएक्शन होने की संभावना होती है. और हर दवा से हो सकने वाले साइड इफेक्ट्स की जानकारी मरीज को दे पाना डॉक्टर के लिए संभव नहीं है. फिर भी कुछ औषधियां ऐसी है जिनके सेवन में अत्यधिक सावधानी बरतना आवश्यक है. उन्ही में से एक है कोर्टिको-स्टेरोइड्स जिन्हें शोर्ट में स्टेरोइड्स कहा जाता है. इन्हें बहुत ही ख़ास बीमारियों में और जिंदगी जब खतरे में हो – ऐसी परिस्थिति में दिया जाता है.
क्या हैं स्टेरोइड्स?
ये एक प्रकार के हारमोन हैं जो हमारे एड्रीनल कोर्टेक्स में बनते हैं. इनके सिंथेटिक प्रारूप प्रयोगशाला में रिसर्च के बाद तैयार किये जाते है. ये हमारे शरीर में समय समय पर होने वाले तनाव (Stress), रोग प्रतिरोधक क्षमता को स्थिर रखने, शरीर में पानी का लेवल व सोडियम-पोटेशियम का कंट्रोल करने, कर्बोहाईड्रेट व प्रोटीन से ऊर्जा का उत्पादन व संचय करने आदि का कार्य करते हैं.
इतिहास: बहुत ही रोचक है.
वर्ष १९४४ में फिज़ोलोजी के प्रोफ़ेसर डॉ. रीचस्तीन सहित एडवर्ड व फिलिप को स्टेरॉयड की खोज करने पर नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा गया था. मर्क एंड कंपनी (Merck) ने सर्व प्रथम इसका सिंथेटिक प्रारूप तैयार किया था जो बैल के पित्त से (जो गाल ब्लेडर में होता है) निर्मित किया गया था. लेकिन कंपनी को इसका उत्पादन इतना महँगा पड़ता था कि १९४५-४६ में १ ग्राम की कीमत २०० डॉलर आती थी. बाद में कई वर्षो की अथक शोध से अब ये पूरे विश्व में हर केमिस्ट पर उपलब्ध है. कीमत भी २०० से ६ डॉलर और फिर चौथाई डॉलर प्रति ग्राम तक नीचे आ गयी.
किस रूप में मिलती हैं?
इंजेक्शन, गोली, ड्रॉप्स, नाक व मुंह द्वारा श्वास से अन्दर लेने हेतु पम्प आदि विभिन्न रूप में उपलब्ध है.
इसके अलग अलग सिंथेटिक प्रारूप इस प्रकार तैयार किये जाते हैं की शरीर में जाकर कोई एक प्रारूप किसी एक विशेष क्रिया को तो दूसरा प्रारूप अन्य क्रिया को निशाना बनाता है.
स्टेरोइड्स का उपयोग कब किया जाता है? (Indications):
अल्सरेटिव कोलाइटिस, एलार्रजी रीएकशंस, सारकोईडसिस, SLE, दमा, के अलावा आई ड्राप, त्वचा पर लगाने की मल्लम चमड़ी की बीमारियों आदि में काम में आती है. 
 (arthritis), temporal arteritis,dermatitis, allergic reactions, asthma, hepatitis, systemic lupus erythematosus, inflammatory bowel disease(ulcerative colitis and Crohn's disease), sarcoidosis and for glucocorticoid replacement in Addison's disease or other forms of adrenal insufficiency.[2] Topical formulations are also available for the skin, eyes (uveitis), lungs (asthma), nose (rhinitis), and bowels. Corticosteroids are also used supportively to prevent nausea, often in combination with 5-HT3 antagonists (e.g. ondansetron).
इनसे होने वाले दुष्परिणाम, इनके सेवन के समय बरती जाने वाली सावधानी आदि अब अगले ब्लॉग में.

डॉ.अशोक मित्तल 20 जनवरी, 2016.    

Monday, January 18, 2016

सावधान! जीवन दाई औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!! भाग 2

सावधान! जीवन दाई औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!  भाग 2
पतला-दुबला, सुन्दर शरीर मोटा-ताजा, गोलमटोल, और बेडोल हो जाता है, मुहांसों के होने से चेहरा पे भद्दापन नज़र आने लगता है. इस सबके अलावा इस औषधि के लम्बे समय तक सेवन से होने वाले दुस्प्रभाव इतने घातक हो सकते हैं की वे कल्पना से परे हैं.
बाहर से मोटा लगने वाला शरीर अन्दर से खोखला हो जाता है, हड्डियों का कैल्शियम बाहर निकल जाने से वे कमजोर व छोटी-मोटी चोट या वजन भी सहन करने योग्य नहीं रहती, ओस्टोपोरोसिस होने से जल्दी जल्दी फ्रेक्चर हो जाते हैं, त्वचा पतली और नाजुक हो जाती है.
उल्टियां होना, पेट में अल्सर, आँतों से खून का रिसाव होने पर मल का रंग काले या कोफी के रंग हो जाता है
दिमाग में असर आने से सर दर्द, चिडचिडापन, डिप्रेशन, भुलक्कड़ पन, नींद की कमी और चक्कर आने लगते हैं.
भूखमें बढोतरी, बार बार पेशाब आना, अत्यधिक प्यास लगना, सीने में दर्द, कमजोरी, पंजे व पैरों में सूजन आ सकती हैं.
चमड़ी पे हाथ लगाने मात्र से ही वह घाव जैसी लाल व सूज जाती है, व रक्त भी आ सकता है.
इन औषधियों को जीवन रक्षक दवाओं के रूप में उपयोग में लेना होता है. इसके अलावा कुछ ख़ास गिनी चुनी व्याधियों में भी इसका उपयोग किया जाता है, इस पैमाने से नाप कर की जब इसके लम्बे समय तक लेने से होने वाले नुक्सान यदि उस बिमारी के दुश-परिणामों से कम हैं, तो दोनों में से इस दवा को चुना जाता है, क्योंकि इसके परिणाम उस बिमारी से कम घातक हैं तथा अन्य कोई दवा इस बीमारी में यहाँ असर नहीं करेगी.
बचपन में मैंने अपनी दादी को छोटे बच्चो को आधा ढक्कन ब्रांडी कभी कभार देते देखा है जब उन्हें सर्दी लग जाती थी. जो सिर्फ औषधि के रूप में ही काम में ली जाती थी. लेकिन वही ब्रांडी बार बार दी जाए, बच्चा रोये तो ब्रांडी, भूखा हो तो ब्रांडी, तो क्या होगा ?? वो कुछ पल को सो जाएगा लेकिन वो बार बार दी हुई ब्रांडी फिर औषधि नहीं ज़हर का काम करेगी. ठीक इसी प्रकार सर्दी हो, जुखाम हो, कमर दर्द हो. एडी का दर्द हो, घुटना दर्द हो, कोई भी छोटी से छोटी बिमारी में जब इन दवाओं का उपयोग होता है तो ये फिर ये जीवन रक्षक के बजाय जीवन भक्षक का रोल अदा करती हैं.
ये बात समझ से परे है की इनका उपयोग एक तो बहुत भारी मात्र में होता है, इसके दुष्परिणाम न मरीज जानता है, न डॉक्टर बताता है, न सरकार का कोई नियम क़ानून है. यूरोप में इन दवाओं के तीन सप्ताह से अधिक या डाक्टरी राय पर कम समय तक (५-७ दिन) लेकिन बार बार सेवन करने वाले मरीजों को एक कार्ड दिया जाता है. जिसमे इससे समन्धित हर तरह की जानकारी, बरतने वाली सावधानियां, कब नहीं लेनी है, आदि का जिक्र होता है. इतना ही नहीं डॉक्टर की परची का ऑडिट भी समय समय पर होता है जिसमें यदि इस तरह की दवा के अलावा   एम्.आर.आई, सी.टी स्कैन आदि क्यों लिखे गए? आदि पर भी डॉक्टर से जवाब मांग लिया जाता है.
इस ब्लॉग को पड़ने के बाद डरने जैसी कोई बात नहीं है, जब जागरूकता आएगी तब इसके बेतरतीब उपयोग पर भी अंकुश लगेगा और अंततः लाभ आपके अपनों को ही मिलेगा.
अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के साथ अगले ब्लॉग में फिर मिलता हूँ.

डॉ. अशोक मित्तल 18 जनवरी 2016 

Sunday, January 17, 2016

सावधान! जीवन दाई औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!

सावधान!
जीवन दाई औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!
 सर्व प्रथम तो मैं ये स्पष्ट कर दूं कि मेरा ये ब्लॉग किसी भी डॉक्टर के खिलाफ व्यक्तिगत इर्ष्या वश न होकर  मेरे लम्बे चिकित्सकीय अनुभव से प्रेरित है और  जीवन के उन कडवे अनुभवों में से एक है जब मैनें अपने आप को असहाय महसूस किया यह समझने में की मरीज क्यों इन दवाओं का सेवन कर रहा है या कई डॉक्टर्स क्यों बेपरवाह होकर इन जीवन रक्षक दवाओं को बात-बात में हर छोटी-छोटी बिमारी (जिसमें जुखाम तक शामिल है) में  सेवन करने की सलाह नित प्रतिदिन देते रहते हैं, या क्यों अधिकतर फॅमिली डॉक्टर लाल, पीली, सफ़ेद व अन्य रंगों या गोल, चोकोर, लम्बी, तिकोने आदि अनेक आकार में उपलब्ध ये गोलिया पुडिया में बाँध कर या पीसकर पाउडर बना कर मरीज को पुडिया बाँध कर दे देते हैं ??? वो भी मरीज की बिना जानकारी में डाले की वो किस औषधि का सेवन करने जा रहा है? उसको कितने समय बाद तक लेते रहना अपनी जिंदगी से खेलने के बराबर है तथा इसके साइड इफेक्ट्स क्या हैं?? जो की बहुत भयानक हो सकते हैं.. किन अवस्थाओं जैसे गर्भावास्ता, डायबटीज, बीपी, अल्सर, ऑस्टियोपोरोसिस आदि में इन्हें नहीं लेना है???
  जन हित में लिखी ये जानकारी अति आवश्यक समझ कर मैं ये ब्लॉग आप सब स्वस्थ रहें, आपमें दवाओं के बारे जानकारी रखने की आदत पड़े, इन्ही शुभ भावनाओं के साथ समर्पित कर रहा हूँ. जानकारी चूँकि लम्बी है और मैंने भी इसे अच्छे से कई दिन के सोच विचार और अध्ययन करने के पश्चात लिखना शुरू किया है. अतः इसे अलग अलग टुकड़ों में प्रेषित करना उचित होगा. वरना आप सब जल्दी ही इसे पड़ते पड़ते थक जायेंगे, बोर हो जायेंगे तो फिर इस ब्लॉग को लिखने का न तो आपको कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा और मेरी मेहनत भी व्यर्थ जाएगी.
अब आपके दिमाग में इन दवाओं के नाम, इनकी उपयोगिता, बुरे प्रभाव, बाज़ार में उपलब्ध भिन्न भिन्न नाम, डोज़ (कितने मिलीग्राम), कितने समय तक लेना सुरक्षित है?? आदि प्रश्न उत्पन्न होंगे. और उनके उत्तर जानने की उत्सुकता भी जाग्रत होगी. तो मेरे अगले ब्लॉग में इनके जवाब के साथ हाज़िर होता हूँ. (क्रमशः)
डॉ. अशोक मित्तल, 17 जनवरी 2016

Saturday, January 16, 2016

आज शाम १६ जनवरी को कीचड का तालाब बना हुआ था एल.आई.सी-वैशाली नगर तिराहा. कीचड भरे तिराहे से गुजरना पडा वाहनों को, पैदल यात्री तो उपाय ही ढूंढते रहे – बेचारे !!!!

आज शाम १६ जनवरी को कीचड का तालाब बना हुआ था एल.आई.सी-वैशाली नगर तिराहा.
कीचड भरे तिराहे से गुजरना पडा वाहनों को, पैदल यात्री तो उपाय ही ढूंढते रहे – बेचारे !!!!
शाम को जहाँ एक ओर वाहन चालकों ने तमीज का परिचय देते हुए अपने वाहन धीमी गति से होटल मानसिंह के सामने कीचड भरी सड़क से निकाले वहीँ दूसरी ओर पैदल चलने वाले नागरिकों के लिए तो कोई तरिका नहीं था की वे वहां से सही सलामत अपने गंतव्य तक पहुँच जाएँ. मुझे ७ बजे अपने एक पत्रकार मित्र की माँ को आकस्मिक व असहनीय दर्द से मुक्ति दिलाने फ्रेजर रोड की तरफ जाना था. करीब ३००- ३५० मीटर तक पानी और कीचड की वजह से धीरे धीरे वहां लुडक रहा था, पीछे से आने वाले वाहनो से दर लग रहा था की कहीं तेजी से गन्दगी उछालते हुए बाँई ओर से यदि निकलेंगे तो मेरे अलावा कई और यात्री भी उस गन्दगी में धुल मिल जायेंगे, पर सोभाग्यवाश ऐसी दुर्दशा नहीं हुई.
जिज्ञासा वश मैंने एक स्थानीय निवासी से पूंछा “भाईसाहेब, कया क्या पाइप वाइप टू ट गया लगता है??” तो उसका जवाब था “पाइप तो नहीं टूटा है जी ये तो मेरे अजमेर का करम ही फूटा है”
वास्तव में इस पीड़ा में सच्चाई है. आये दिन नल फट जाते है, पाइप लाइन टूट जाती हैं, नालियां अवरुध्ध हो जाती है, सड़कें जाम होती रहती है, वहां टकराते रहते हैं, लोगों की हड्डियाँ टूटती रहती हैं, लेकिन हमारा शहर बहुत सहनशील है. लोग पड़े लिखे हैं, संस्कारी हैं, कभी विरोध नहीं करते.
स्मार्ट शहर की घोषणा के बाद से तो सपनों में भी स्वयं को को ही स्मार्ट नहीं  बल्कि शहर को भी स्मार्ट मान चुके हैं.
अरे भाई. जब स्मार्ट-स्मार्ट की इस रंग लीला में ही बह गए हो तो अब इस रंग-लीला के कीचड के रंगों  में ही जीवन गुजारना शायद नीयति है शहर वासियों, ये जानलो.
डॉ. अशोक मित्तल १६-०१-१६

Thursday, January 14, 2016

अकाश से पंछी फ़ड़फ़ड़ाता-तड़फता हुआ चकर-घिन्नी की तरह नीचे आ रहा था। १०-१२ युवाओं की टीम तैयार थी उसके प्राथमिक उपचार हेतु।

अकाश से पंछी फ़ड़फ़ड़ाता - तड़फता हुआ चक्कर-घिन्नी की तरह नीचे आ रहा था।
१०-१२ युवाओं की टीम तैयार थी उसके प्राथमिक उपचार हेतु।
आज, १४ जनवरी को क्लिनिक से फ्री होते ही जयपुर पहुँचने की जल्दी में बिना लंच किये ही मैं परिवार सहित दोपहर १. ३० पर रवाना हुआ।  जयपुर के एम  आई रोड पर अचानक ट्रैफिक रुका और अंकुर ने चिंतित स्वर में कहा "ओह!!,   अरे - अरे  सामने ऊपर की ओर देखो - कैसे पंछी  फड़फड़ा रहा है???" एक पक्षी करीब ३० फ़ीट ऊंचाई से जमीं की ओर ओंधा लटके हुए, तेजी से गोल गोल  घूम रहा था, अनुमान से वह एक डोर में अटका हुआ था जो आसमान से किसी पतंग से बंधी थी,  या तो वो कोई कटी पतंग थी या उड़ाने वाले ने पंछी के अटकने पर उस की  डोर तोड़ दी थी।   उसके पंख तेजी से हरकत कर रहे थे, नीचे कुछ युवाओं का झुण्ड एक दूजे के कंधे पर चढ़े, हाथों में बांस लिये उसे पकड़कर, उपचार देने व जीवन दान देने के लिए बीच सड़क पर जोखिम भरे ट्रैफिक में खड़े थे।
पंछियों को ये मनुष्यों के त्योंहार और कायदे कानून का कहाँ ज्ञान है ?? वर्ना वे इन दिनों कहीं और पलायन कर लेते. सरकार ने सुबह व शाम दो दो घंटे पतंग न उड़ाने का क़ानून बनाया है, पर पक्षी दोपहर में नहीं उड़ सकते ऐसा कोई कानून या दिशा निर्देश इन भोले पंछियों को  कौन दे सकता है ??? प्रकर्ती भी नहीं दे सकती ??? हाँ, सुबह अधिकतर इनके झुण्ड के झुण्ड आकाश में  भोजन की तलाश में कहीं दूर जाते और शाम को वापस अपने घोंसलों में लौटते दिखाई देते हैं। लेकिन दोपहर को उड़ान भरने वाले पक्षी शायद बीमार होते होंगे या उम्र अधिक होने से लम्बी उड़ान भरने में सक्षम नहीं होते होंगे या फिट होते हुए भी उनके चूजों की परवरिश करने के लिए घोंसले में ही रूक जाते होंगे, और उनकी  दिन भर की जरूरतों के लिए छोटी छोटी उड़ान भर कर इधर से उधर आते जाते होंगे। जो कुछ भी है, एक बात  तो निश्चित है की मानवता जीवित है। तभी तो वो युवाओं का झुण्ड अपनी जान की परवाह किये बिना उन  बेजुबानों को  जान बख़्शाने के प्रयासों में सतत प्रयत्नशील है।

डॉ. अशोक मित्तल, १४ जनवरी २०१६ रात्रि १ बजे. 

Wednesday, January 13, 2016

अपनों से बेगाने हो चुके, लोगों को परायों ने अपनाया !!! अपना घर में जाकर महसूस होती है मानवता की सेवा!!

अपनों से बेगाने हो चुके, लोगों को परायों ने अपनाया !!!
अपना घर में जाकर महसूस होती है मानवता की सेवा!!
  आज संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं, शहरों में हम दो-हमारे दो के फोर्मुले पर सिमटते परिवार और अब इस से भी घट कर मेट्रोज में लिव-इन-रिलेशन शिप का फेशन आ गया है. ऐसे दौर में बुजुर्गों की बुडापे में देख रेख करना कुछ लोगों को सेवा के बजाय सर दर्द लगता है. समाज के लिए ये आज की एक गंभीर और चुनौती पूर्ण समस्या है !!
 आज अपना घर में फिर एक बार मुझे सपत्निक जाने का मौका मिला, वहां के फाउंडर ट्रस्टी श्री प्रेम चन्द् लुनिया जी भी साथ थे. जिनके अथक प्रयासों से इसकी अजमेर में कुछ वर्षों पूर्व भरतपुर के माँ माधुरी व डॉ. ब्रिज सुन्दर जी की प्रेरणा व मार्ग दर्शन से लोहागल रोड स्थित नारी शाला के सरकारी भवन में शुरुआत हुई.
 अस्सी लापता महिलाऐं व पुरुष वहाँ भरती हैं, जिनमें से अधिकतर तो याददाश्त खो चुके हैं, कुछ का मनो-चिकित्सक इलाज़ कर रहे हैं, उन्ही में से एक माताजी अचानक उठकर हमारी ओर आई और बहुत अस्पष्ट और कन्फ्यूज्ड शब्दों में कुछ कुछ बोलती रही, उन शब्दों में से जो लुनिया जी को इंगित थे, ये बात हमें समझ आई की “तू मुझे चोपाटी से उठा के लाया था”  तो लुनिया जी को याद आया की हाँ वे ही उसे अस्त व्यस्त हाल में आना सागर चोपाटी से रिक्शे में चार साल पहले अपना घर में ले गए थे. फिर मेरी और मुढ कर “छोटा बच्चा, बच्चा” कहते कहते बोली “बेटा इस दुनिया में कोई अपना नहीं है.” सिर्फ ये दो ही लाइनें साफ़ बोल पायी थी वो. अपना घर में ये बातें उस के मुख से सुन कर की कोई अपना नहीं है – दिल को गहराई तक छू गया.
 अपना घर के उन सेवा धारी भाई बहनों के समर्पण और त्याग को तहे दिल से दुआएं, प्यार, आशीष, शुभकामनाएं और उनके हिम्मत को दाद देते देते मन नहीं थका और बहुत ही भारी मन से लौट कर अब ये सोच कर मन विचलित हो रहा है की जिन माँ-बाप ने बच्चों को कन्धों पर ही नहीं बल्कि सर आँखों पर उठा कर पाला पोसा, जिस माँ ने अपना मुंह का निवाला त्याग कर, पहले अपनों के मुह  में डाला, उन्हें कैसे कोई भूल गया ???
डॉ अशोक मित्तल १३ जनवरी २०१६


Saturday, January 9, 2016

कब्ज घर घर में व्याप्त आजकी एक ज्वलंत समस्या है। IMA की गोष्टी में कब्ज के कारण व निवारण पर हुई गहन चर्चा।



कब्ज घर घर में व्याप्त आज की  एक ज्वलंत समस्या है। 
IMA की गोष्टी में  इस विषय के कारण  व निवारण पर हुई  गहन चर्चा। 

      आज शाम होटल मानसिंघ में IMA, याने  इंडियन मेडिकल असोसिएशन, अजमेर द्वारा आयोजित "कब्ज के कारण व निवारण" पर एक कार्यशाला का आयोजन किया  गया।  जयपुर के एस आर कल्ला हॉस्पिटल से प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित डॉ. मुकेश कल्ला व डॉ एस एस ताम्बी ने गहनता से इस समस्या पर प्रकाश डाला।   सभा के चेयर पर्सन डॉ जी एस झाला व  राज्य इकाई के वाइस प्रेजिडेंट डॉ जवाहर लाल गार्गिया, अजमेर ब्राँच  प्रेजिडेंट डॉ राजकुमार जयपाल, सचिव डॉ  हरबंस सिंह दुआ मंच पर विराजमान थे, मंच संचालन डॉ अशोक मित्तल ने किया।
कारण क्या हैं ??          
 आधुनिक जीवन शैली, फ़ास्ट फ़ूड, कम फाइबर वाली डाइट, व्यायाम की कमी मुख्य कारण हैं कब्जी के। इसके अलावा उस समय को टाल देना जब शरीर को फ्रेश होने की हरारत हो, नींद की कमी, मानसिक तनाव, दवाओं का सेवन आदि भी इसको उत्पन्न करती हैं. इस सब के अलावा  आंतो की, व  अन्य बीमारियों में भी कब्ज के लक्षण पैदा होते हैं।  
समस्या क्या है इससे ??
   कब्ज से दिन भर काम में मन न लगना, चीड़ चिड़ा  पण , पेट फूलना, पेट का भारीपन, भूख न लगना, व दिन भर गैस पास होते रहना जैसी शिकायत रहती है।  गैस से जहां एक ओर वातावरण में बदबू फैलती है तो दूसरा जो आवाज होती है उससे व्यक्ति को स्वयं को तो शर्मिंदगी महसूस होती ही है आस पास बैठे संगी-साथियों को भी  इससे परेशानी होती है।  यानी ये छोटी सी लगने वाली "कब्जी" जन्मदाता  है - अनेक निजी, शारीरिक, सामाजिक, पारिवारिक और मानसिक समस्याओं की। 
इलाज़ क्या है?
नियमित कसरत करना, हरी सब्जी, सलाद  (गाजर, मूली, खीरा, ककड़ी आदि) व फलों का सेवन, बिना छाना आटा, छिलके की दाल का सेवन करना लाभदायक होता है। मिठाई, कचोरी, समोसा, नमकीन, चिकनाई , आदि से परहेज करना चाहिए।
दवाइयाँ क्या लें??
बिना चिकितसक की सलाह के इनका सेवन करना, ख़तरा मोल लेना है।  बाजार में उपलब्ध हर दवा के फायदे और नुक्सान के बारे में विस्तार से चर्चा के बाद नतीजा ये निकला की हर मरीज को एक दवा से ठीक नहीं किया जा सकता व हर एक की कब्ज का कारण भी एक नहीं हो सकता।  एक दवा लेक्टूलोज़ जो २००० से २०१३ तक प्रचलन में थी, अब आउट डेटेड हो गई है।  उसकी जगह पेग नामक साल्ट ज्यादा सुरक्षित पाया गया है।  इसी तरह मर्जी से ली गयी laxatives जैसे  की Dulcolax आदि का सेवन करना भी घातक हो सकता है। 

अंत में प्रश्न उत्तर काल के बाद सभा का समापन हुआ जिसके पूर्व  इंडियन मेडिकल असोसिएशन, राजस्थान इकाई के वाइस प्रेजिडेंट डॉ जवाहर लाल गार्गिया ने उपस्थित मेंबर्स से अनुरोध किया की उनकी  नजर में जो भी डॉक्टर  अब तक IMA के मेंबर नहीं बने हैं उन्हें जोड़ने हेतु प्रेरित किया जाए व फ्रटर्निटी को और अधिक मज़बूत बनाया जाये।
एक दिन में तीन तीन कार्य शालाएं ??? उचित है या अनुचित????
आज ही के दिन होटल दाता - इन में हो रही ओर्थपेडीक कांफ्रेंस तथा मेरवाड़ा पैलेस में हो रही गायनेकोलॉजिस्ट कांफ्रेंस भी खासा चर्चा का विषय रहा। जिस वजह से आज की मीटिंग में इक्की दुक्की महिला चिकित्सक ही उपस्थित थीं।  सभी की एक राय रही की अलग अलग विशेषज्ञों की कार्य शालाएं ज़रूरी हैं मगर IMA की कार्य शालाओं को नजरअंदाज करना गलत है।
डॉ,अशोक मित्तल, https://www.blogger.com/blogger.g/ashokmittal medical  journalist
०९/०१/२०१६