Friday, January 22, 2016

सावधान! भाग-3ब: जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!

सावधान! भाग-3ब:  जीवन दायी औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!

विशेषज्ञों का क्या कहना है, स्टेरॉयड के बाबत ???
अब आगे बढ़ने से पहले ज़रा गौर कर लें कि मेडिकल समुदाय के विभिन्न विशेषज्ञों का क्या कहना है???
१. कचहरी  रोड स्थित क्षेत्रपाल आई हॉस्पिटल के नेत्र विशेषज्ञ डॉ. अरुण क्षेत्रपाल ने बताया कि ये दवाएं शीड्यूल-एच ड्रग होती हैं. याने की बिना डॉ. की पर्ची के इन्हें बेचा नहीं जा सकता तथा हर बार दवा खरीदने के लिए उसी दिन की तारीख में डॉ. के दस्तखत वाला नया पर्चा होना कानूनन जरूरी है. बावजूद इसके ये बाज़ार में खुले आम आसानी से मिलती हैं. डॉ. अरुण ने आगे कहा की:-
धूल-मिटटी, धूंआ और धूप की अधिकता के कारण आँखों में एलर्जी एक कोमन समस्या है जिस की वज़ह से आँख से पानी आना, ऑंखें लाल होना, खुजली होना आम बात है. पीड़ित व्यक्ति केमिस्ट के पास जाता है और केमिस्ट उसे स्टेरॉयड की आई ड्राप दे देता है जो बहुत तेजी से आराम पहुंचाती है. जबकि ऐसे में साधारण आई ड्रॉप्स भी उपयुक्त होती हैं.  चूँकि धूल-मिटटी, धूंआ और धूप से होने वाली ये एलर्जी बार-बार होती रहती है और हर बार उसे स्टेरॉयड की आई ड्राप के डालने से उसे आराम हो जाता है तो परिणाम स्वरुप उसे स्टेरॉयड-ग्लोकोमा व स्टेरॉयड-इनड्युस-अंधापन हो जाता है. 
डॉ. अरुण ने व्यथित मन से बताया की 20 जनवरी को ही एक 25 वर्ष का युवा आँख की रौशनी चली जाने की शिकायत लेकर उनके पास शेखावाटी से उपचार हेतु आया था. गहन जांच व पूछताछ से स्टेरॉयड ड्रॉप्स का लगातार उपयोग में लेना सामने आया. याने स्टेरॉयड ड्रॉप्स के अन्धाधुंध उपयोग से इस युवा को अपनी आँखों की रोशनी गवानी पड़ी.

डॉ. अरुण ने आगे बताया की किडनी फेल, अनियंत्रित गठिया, फेफड़ों की ILD आदि जीवन-मरण जैसी परिस्थिति में तो इन स्टेरॉयड का उपयोग टेबलेट, इंजेकशन आदि रूप में उचित है भले ही उसे स्टेरॉयड-इनड्युस-केटरेक्ट या ग्लोकोमा ही क्यों न हो जाये. क्योंकि इन बीमारियों में जीवन बचाना प्राथमिकता होती है.

2. जे.एल.एन. मेडिकल कॉलेज में सेवारत वरिष्ठ कान-नाक-गला विशेषग्य डॉ. भास्कर गोपाल रीजोनिया ने बताया की उन्हें अक्सर लेकिन सावधानी पूर्वक इस दवा का कई बार उपयोग करना पड़ता है, लेकिन वे बहुत कम डोज़ में अंश कालिक ही देते हैं, उसमे भी गोली के बजाय नेज़ल स्प्रे देना उनकी प्राथमिकता होती है. 
ये भी कहा की मरीज अक्सर डॉ. को फीस न देनी पड़े या बार बार अस्पताल के चक्कर न काटने पड़ें, यह सोच कर उसी पुरानी पर्ची से बार बार खरीद कर, इनका  सेवन  कर कर के स्वयं का ही नुक्सान करता रहता है. याने फीस बचाने के चक्कर में कई गुना अधिक संकट में धकेलता है अपने आप को.. 
डॉ. रीजोनिया ने ये भी कहा की  केमिस्ट को एक पर्ची पर लिखी दवा का कोर्स एक बार ही देना चाहिए. डॉ. फिर से नवीन तारीख की सील व हस्ताक्षर युक्त नया पर्चा दे तो ही इन दवा को रीपीट करना चाहिए.

3. शहर के जाने माने इन्टरवेंशन कारडीर्ओलोजिस्ट डॉ. विवेक माथुर जो एन्जीओग्राफी व एनजीओप्लास्टी में दक्ष हैं, ने अपने कमेंट्स में कहा की उनके विभाग में इन दवाओं को कोई रोल नहीं है, हाँ कभी कभार एन्जीओग्राफी के दौरान काम में ली जाने वाली डाई से या किसी ड्रग से यदि ऐनाफाईलेक्टिक रीएक्शन हो जाए तो ही स्टेरॉयड काम में लेने पड़ते हैं. लेकिन उन्हें तकलीफ उन केसेज़ में होती है जब मरीज हार्ट फेल याने LVF (Left Ventricular Failure), फेफड़ों में रुकावट याने COPD (Chronic Obstructive Pulmonary Disease) में पहले से ही स्टेरॉयड खा रहे होते हैं, वो भी बिना मरीज की जानकारी के, इससे उनका ब्लड प्रेशर अनियंत्रित  हो जाता है व लकवा होने का खतरा पैदा कर देता है तथा शरीर में पानी इकठ्ठा हो जाने से पेरों, टांगों व मुंह पर सूजन आ जाती है. 
डॉ. विवेक माथुर ने अपील की है की यदि हम चिकत्सा समुदाय के बंधू (याने नीम-हकीम, बंगाली डॉक्टर या योग्यता प्राप्त चिकित्सक जो भी हों) मरीज को स्टेरॉयड कार्ड जैसा कोई रेकोर्ड न भी दे पायें तो कम से कम इतना तो उसे जागरूक करें की आपको हम स्टेरॉयड दे रहे हैं जिनके क्या क्या नफे नुक्सान हैं.. और मरीज को भो चाहिए की यह जानकारी निश्चित तौर पर हर उस अगले चिकित्सक को जिसके  पास वो परामर्श के लिए जाता है, आगे होकर बताये की वो स्टेरॉयड का सेवन कब से, किस डोज़ में, और कितनी बार कर चुका है.
  
4. विजय ई.एन.टी होस्पीटल के विशेषज्ञ डॉ. विजय गक्खड  ने कहा की "उनके कान-नाक-गले के फील्ड में भी स्टेरॉयड का उपयोग होता है लेकिन पांच से सात दिन के लघु कोर्स व हलकी डोज़ के रूप में, वो भी तब की जब अन्य नॉन-स्टेरॉयड दवाओं का असर अपेक्षित न हो. जो लोग पहले से ही इन दवाओं का प्रयोग बिना डाक्टरी राय के, करने के बाद उनके पास आते हैं तो फिर हाई डोज़ व लम्बे समय तक  स्टेरॉयड दिए बिना रेस्पोंस नहीं आता है. जो और अधिक हानि कारक होता है." उन्होंने आह्वाहन किया की कोई भी इन दवाओं का सेवन बिना विशेषग्य चिकित्सक की राय के बगेर नहीं करे और अपना जीवन संकट में डालने से बचें."

शीडयूल-एच ड्रग में आने वाली स्टेरॉयड के खतरों से अवगत कराना, मैं एक चिकित्सक, शिक्षक, वरिष्ठ नागरिक व अब जर्नलिस्म में मास्टर्स डिग्री हासिल करने के बाद एक नवोदित मेडिकल जर्नलिस्ट के नाते अपने दायित्व का निर्वहन करता हुआ आपको समय समय पर आगे और जानकारी देता रहूंगा. हालांकि इस सम्पूर्ण जानकारी को सरल शब्दों में लिखना और आप तक अपनी भाषा में प्रेषित करना, जिससे की आप को समझ में आ जाए, मेरे लिए चुनौतीपूर्ण है.

शीडयूल-एच ड्रग जो की ड्रग्स एंड कोस्मेटीक्स रुल १९४५ के तहत एक "नियंत्रित- श्रेणी" की दवा है जिन्हें बिना डॉक्टर की पर्ची के ओवर-दा-काउंटर नहीं बेचा जा सकता है. फिर भी इनकी  बे-तरबीत बिक्री और उपयोग से जो खामियाजा समाज भुगत रहा है ये बहुत ही अफ़सोस की बात है.

अगले ब्लोग्स में और भी विशेषज्ञों की राय आनी अभी बाकी है जिन्हें आपकी सेवा में फिर पेश करूंगा. कृपया इंतज़ार करें.

डॉ. अशोक मित्तल, मेडिकल जर्नलिस्ट, २२ जनवरी २०१६ 


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