Saturday, March 26, 2016

डॉक्टर साब, बांयटा घणा आ व.. ! पिंडली में मांस पेशी के खिंचाव से भयंकर दर्द है !! रात के आखरी पहर में नस पे नस चड़ने से अचानक उठना पडा, दर्द से बुरा हाल है !!!

डॉक्टर साब, बांयटा घणा आ व.. !  पिंडली में मांस पेशी के खिंचाव से भयंकर दर्द है !! रात के आखरी पहर में नस पे नस चड़ने से अचानक उठना पडा, दर्द से बुरा हाल है !!!
इस तरह की पीड़ा लिए अक्सर पिंडली को कास कर पकडे या जांघ पर टाईट पट्टी बांधे हुए मरीज चिकित्सक के पास आते रहते हैं.


मेडिकल दृष्टि से तो Muscle Pull, Muscle Strain, Muscle Spasm, Muscle Cramps अलग होते हैं, पर आम भाषा में लोग इन अंग्रेजी नामों या ऊपर लिखे मारवाड़ी/हिंदी शब्दों से अपनी व्यथा का वर्णन करते हैं.
सबसे ज्यादा पिडली की या फिर जांघ की हेम स्ट्रिंग्स में मांस पेशियाँ में ये समस्या होती है. मांस पेशी की बनावट रबर बेंड की तरह लचिली होती है जिससे की इनकी लम्बाई छोटी व बड़ी होती रहती हैं, इस विशेषता की वजह से ये हमारे विभिन्न जोड़ों को मोड़ने और वापस सीधा करने के कार्य का सम्पादन करती हैं.. ऐसा करते वक़्त यदि बहुत ताकत से मांस पेशी खिंच कर छोटी हो जाय और वापस लम्बी नहीं होने पावे तो बान्यटा / Muscle Cramp की अती-पीड़ा दायनी स्थिति पैदा हो जाती है. 






कारण 
अंगड़ाई लेने के बाद ये समस्या ज्यादा होती है. वैसे तो अंगड़ाई लेने से शरीर को विश्राम का आभास होता है. लेकिन अंगडाई लेने में मांस पेशियाँ पूरी खिंच कर स्प्रिंग की तरह छोटी हो जाती हैं, और जब इन्हें वापस ढीला हो जाना चाहिए तो ये खिंची की खिंची ही रह जाती हैं.
 शरीर में पानी की कमी (Dehydration) भो एक प्रमुख कारण है. महान क्रिकेटर्स सौरभ गांगुली व सचिन तेंदुलकर की हेम स्ट्रिंग्स में ऐसा होते हमने कई बार देखा है.

अत्यधिक परिश्रम के बाद थकान (Fatigue), लू लगने से, कैल्शियम/ मेग्नीसियम/विटामिन-ई/ विटामिन-डी/ सोडियम/पोटेशियम आदि की कमी के अलावा और भी कई कारण हैं इस बिमारी के.
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Friday, March 25, 2016

नकसीर : नाक में बार बार उंगली डालना है ब्लीडिंग का मुख्य कारण
नाक से खून रिसना सामान्य तया घर घर में पाई जाने वाली साधारण समस्या है जो वैसे तो घरेलु उपचार से ही काबू में आ जाती है. लेकिन कभी कभार अत्यधिक खून बह जाने पर संकट कालीन स्थिति उत्पन्न कर देती है.
नाक में उंगली डाल कर साफ़ करना है नकसीर का मुख्य कारण
नाक में जमी चिकनाई जो हवा व गर्मी के असर से सूख कर सख्त हो जाती उसे बार बार ऊँगली डाल कर कुचरने से नाक तो एक बारगी साफ़ हो जाती है लेकिन उसकी अंदरूनी त्वचा जो मुलायम व नाज़ुक होती है वहन घाव हो जाते हैं, जिनमे वापस चिनाई इकठ्ठा हो कर सूखती रहती है. याने वो जगह एक तरह का छोटा खड्डा हो जाता है, जिसमे सूखा हुआ म्यूकस जब सिकुड़ने लगता है तो मन को ऊँगली डाल कर साफ़ करने को उकसाता है.
उंगली से नाक साफ़ करने से ऊँगली तो गन्दी होती ही है, आस पास भी गन्दगी फैलती है व देखने वालों को भी घिन्न आती है. बड़ों को ऐसा करते देख बच्चे भी यही विधि दोहराते हैं, जिनके नाक की अंदरूनी मेम्ब्रेन तो अत्यंत नाज़ुक होती है और उंगली के छूने मात्र से ही ब्लीडिंग शुरू कर देती है. 


वैसे तो नकसीर के अन्य कई कारण भी हैं जिन्हें समझना जन साधारण के लिए उपयोगी नहीं है फिर भी ब्लड प्रेशर व अन्य कारण से कभी कभी खून का रिसाव रोकना संभव नहीं होता है तो ऐसी स्थिति में तुरंत नजदीकी अस्पताल या चिकित्सक के चले जाना चाहिए.
उपाय
1.       नाक को हर २-३ घंटे में अन्दर से गीला करके सूखे म्यूकस को बाहर सिनक देना चाहिए, उंगली से तो कभी भी साफ़ नहीं करना चाहिए.
2.       ब्लीडिंग होने पर ठंडा पानी, बर्फ लगा कर कुछ क्षणों के लिए उस जगह को दबा कर रखना चाहिए.
3.       रूई को साफ़ पानी, सलाइन या एड्रेनैलिन में भिगो कर, निचोड़कर इसकी पेकिंग करनी चाहिए.
4.       चिकित्कीय सलाह हेतु प्रस्थान की तैय्यारी रखनी चाहिए.
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Tuesday, March 22, 2016

बारादरी – अजमेर की शान: बन रहा कूड़ा दान

बारादरी – अजमेर की शान: बन रहा कूड़ा दान
1.       चारों और पहाड़ों से घिरा, बीच में एक मन मोहक झील और झील के चारों और गंगा जमुनी तहजीब के चलते हर धर्म व जाती के लोग जहाँ रहते हैं वो शहर है अजमेर. जिसकी पहचान बारादरी के अलावा ख्वाजा साब की दरगाह, ब्रह्मा मंदिर पुष्कर, मेयो कॉलेज, गवर्नमेंट कॉलेज, सेंट अन्स्लम, सोफिया, कान्वेंट स्कूल आदि कई अन्य रूपों में भी होती है.
बारादरी का सुबह का नज़ारा ऐसा होता है जैसे पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आया हो. वहाँ की सतरंगी छटा मन मोह लेती है.






बारादरी – अजमेर की शान: बन रहा कूड़ा दान
2.       लेकिन पुरातत्व विभाग, नगर निगम व अन्य संस्थाओं की बेरुखी के चलते यह खूबसूरत जगह एक कचरा दान में परिवर्तित होती दीख रही है. आज सुबह कई सीनियर सितिजन के अलग अलग समूहों ने मुझे ने दबी ज़बान में अपना दुह्ख प्रकट करते हुए कई दिनों से कचरा न उठाये जाने के कारण जगह जगह इकठ्ठे हो रखे गन्दगी के ढेर दिखाए. मुह पर मास्क लगा कर इनके फोटो भी लिए.





3.       अजमेर के मेयर ने एक बार सभा में एक एप्प का जिक्र किया और कहा की इस पर फोटो क्लीक करो और हमें भेजो, तुरंत सफाई हो जाएगी. लेकिन विडंबना ये की यह एप्प काम ही नहीं करता.
वहाँ अन्दर कोई ऐसा कार्यालय या कर्मचारी भी नहीं जिसे सफाई के बारे में शिकायत कर सकें.

4.       निराशा नहीं, विश्वास है: इस बेकद्री से मिलेगी निज़ाद
जहां एक और स्मार्ट सिटी की अफवाहें, दूजा स्वच्छ भारत अभियान, तीजा अजमेर में दुनिया भर की समाज सेवी संस्थाएं, उच्चतम न्यायालय के झीलों के संरंक्षण के आदेश और पांच पांच मंत्रियों के होते यदि अजमेर की शान हो रही है कचरा दान तो अजमेर वासियों समझ लो की शहर की किस्मत ही खराब है. अब इस फूटी किस्मत का सितारा कब चमकेगा इसका इंतज़ार रहेगा.
डॉ. अशोक मित्तल, मेडिकल जर्नलिस्ट, drashokmittal.blogspot.in
Facebook: ashok.mittal.37




Sunday, March 20, 2016

दक्षिणी ध्रुव के मध्य से प्रकाश की किरणें जिस मंदिर के शिखर के केंद्र बिन्दु तक अबाधित पहुंचती हैं वो है सृष्टि का प्रथम ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ !!

दक्षिणी ध्रुव के मध्य से  प्रकाश की किरणें  जिस मंदिर के शिखर के केंद्र बिन्दु तक अबाधित पहुंचती हैं वो है सृष्टि का प्रथम ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ !!
29 जनवरी को प्रातः 6 बजे सोमनाथ स्टेशन पहुँच कर झटपट तैयार होकर एक ऑटो रिक्शा में लोकल भ्रमण हेतु चल दिए.
सोमनाथ मंदिर का बाह्य परिसर साफ़ सुथरा और सुन्दर एक विशाल मैदान जैसा है जो पुष्कर के मेला ग्राउंड से करीब चार गुना बड़ा है. प्रति वर्ष शिव रात्री, सूर्य ग्रहण, श्रावन पूर्णिमा पर भारी मेला लगता है जिसमे आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ये परिसर अनुकूल है. मंदिर के दो तरफ समुद्री लहरों के थपेड़े हैं, तीसरी तरफ पुराना सोमनाथ मंदिर है.

सुरक्षा व्यवस्ता सख्त हैमोबाइल फोनकेमरापर्स आदि सब बाहर एक लोकर में जमा करा कर एक अन्य बहुत बड़े काउंटर पर अपने जूते चप्पल जमा कराने के बाद फिर से सिक्यूरिटी चेक से गुजर कर जब भीतरी परिसर में पहुंचे तो वहाँ की सुन्दरता और सौम्यता ने ह्रदय को छू लिया. लाइट एंड साउंड शो तकनीकी खराबी के चलते बंद था. चारों ओर सुन्दर बगीचे के मध्य मंदिर की बाहरी व अंदरूनी वास्तुकला बहुत ही खूबसूरत है. महिलाओं को इस बात का सकून था की टॉयलेट्स स्वच्छ थे.. प्राचीन काल में कई बार इस मंदिर को लूटा गया और तोड़ा गया. पुराने मंदिर के अवशेष व फोटो की एक हाल में प्रदर्शिनी लगी हुई है. जिन्हे देख कर मन काफी व्यथित हुआ. आजादी के बाद इसका पुनर्निर्माण सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में किया गया और 1951  में इसे देशवासियों को समर्पित किया गया.




विश्व के प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ का ऋग्वेदस्कन्द पूराण और महाभारत में वर्णन है. इसकी ऊंचाई सात फूट, घेरा तीन हाथ का और ज़मींन में दो हाथ गडा हुआ है. शिवलिंग की भोगोलिक स्थिति ऐसी है की इसके शिखर के मध्य बिंदु से प्रकाश की किरणें सीधे दक्षिण ध्रुव की धुरी तक अबाधित जाती हैं. पूजा के वक़्त ब्राह्मणों को बुलाने के लिए जो घंटा बजाया जाता है वो दो सौ मन का है.
भाल्का तीर्थ  
श्री कृष्ण की पगतली में जिस स्थान पर तीर लगा उसे भाल्का तीर्थ कहते  हैं. गुजरात के प्रभास-पाटन क्षेत्र में स्थित यह सोमनाथ से की.मी. दूरी पर है. गुजराती में भालका का मतलब है बाण याने तीर. 5500 वर्ष पश्चात भी वो पीपल का वृक्ष भाल्का तीढ़ में मौजूद है  जिसके नीचे योग समाधि में बैठे श्री कृष्ण का बांया चरण कमल किसी शिकारी ने एक अति सुन्दर मृग का मुख समझ कर भालका (बाण) चला दिया. तत्पश्चात अपनी भूल का पश्चाताप भी करने लगा और श्री कृष्णा से क्षमा याचना मांगने लगा. तब कृष्ण ने उसे आश्वासन दिया की ये सब तो उन्ही की इच्छा से हुआ है.


निज धाम 
निज धाम सोमनाथ मंदिर के 3 - 4 कि.मी. के दायरे में है. तीर लगने के बाद श्री कृष्ण अपने निज़धाम आ गए और अपनी योग शक्ति से सृष्टि में लीन हो गए. इस निजधाम में माता रुक्मणी की चूड़ियाँलड्डू गोपाल की सुन्दर मूर्तीपालना व अन्य वस्तुएं  रखी हुई हैं. मेरे साथ एक बिल्ली भी वहां आकर बैठ  गयी और मेरी ही तरह इन सब चीजों को ऐसे निहारने लगी जैसे वो मेरी कोई साथी हो. उसने फोटो भी प्यार से खिंचवाया. बाहर श्री कृष्णा के चरण पादुका एक गोल व सुन्दर छतरी में बीचों बीच स्थापित हैं. इनके दर्शन करके ऐसे एहसास हुआ जैसे हमारी यात्रा यहां आये बिना अपूर्ण थी. डॉ. शशि तो श्री कृष्ण की जन्म भूमि मथुरा में ही पैदा हुई और बचपन में रोज़ वहाँ दर्शन को जाती थी. तो इन सब बातों और वहां के स्पंदनों को महसूस करते हुए हमारी आँखें  भीग गईं. जिनका क्या कारण रहामन की किस दशा के वे सूचक थे इसका वर्णन करने के लिए मेरे पास कोई उचित स्पष्टी करण व शब्द नहीं हैं. लेकिन इस शाश्वत सत्य का ज़रूर स्मरण हुआ की जब स्रष्टि के रचयता को ही शरीर त्याग कर इस संसार से जाना पड़ा तो हम सब को भी जब कभी बुलावा आयेगा तो जाना ही होगा.







सूर्य मंदिर, पांडव गुफा व हिंगलाज माता मंदिर 
सूर्या मंदिर के बाजू में ही पांडव गुफा है जो इतनी संकरी है की में बहुत मुश्किल से करीब दौ मंजिल उतरकर  नीचे  पहुंचा जहाँ एक बड़े हाल में दूसरा छोटा हाल है. ऑक्सीजन की कमी से घुटन महसूस होने से मुझे उलटे पाँव लौट आना पड़ा. कहते यहाँ पांडव अपनी कुल देवी हिन्लाज़ माता की कृपा से ही सुरक्षित रह पाए थे. बाहर ही माता का स्थान है.
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Dr. Ashok Mittal, मेडिकल जर्नलिस्ट, drashokmittal.blogspot.in, facebook: ashok.mittal.37


Thursday, March 17, 2016

पेट में साडे पांच किलो की गाँठ से जान को खतरा : मिला जीवन दान

पेट में साडे पांच किलो की गाँठ से था जान को खतरा : मिला जीवन दान

44 वर्षीय महिला के बच्चे दानी में पनप रही साढे पाच किलो की गाँठ की शल्य क्रिया सफलता पूर्वक संपन्न कर अजमेर के एक निजी चिकित्सालय में डॉक्टरों ने किया कमाल. महिला अब पूर्णतया स्वस्थ है.
इतनी वजनी व बड़ी 24 से.मी. की गाँठ का ऑपरेशन अपने आप में एक चुनौती है. बच्चे दानी में इतने बड़े फ़ाइब्रोइड दुर्लभ होते हैं, इसका इतना बड़ा हो जाना मरीज की ओर से बरती गयी घोर लापरवाही का सूचक है. इन फ़ाइब्रोइड का कैंसर में परिवर्तित होने की पूरी पूरी सम्भावना होती है.
24 घंटे पश्चात फोन पर बात करने पर आज मरीज ने सकुशल होने का समाचार दिया व कहा की उसे इस गाँठ का कोई आभास ही नहीं हुआ. पेट फूलने पर वो इसे पेट में गैस भरना समझती रही. उसने अपना नाम भी ब्लॉग में लिख देने को कहा. पुरानी मंडी निवासी रेनू पत्नी श्री अनिल वर्मा ने ऑपरेशन के बाद संतुष्टि जाहिर की है.      
वैशाली नगर स्थित गेटवेल अस्पताल की निदेशक डॉ. अनुपमा मेहता व सर्जन डॉ. राजा मेहता ने बताया की उनके सर्जरी के लम्बे अनुभव के कारण इस ऑपरेशन को करने में उन्हें कोई परेशानी या हिचक नहीं हुई. चिकित्सा समुदाय से जुडे  IMA, PMPS व अन्य असोसिएशन के सदस्यों द्वारा लगातार उन्हें बधाई सन्देश मिल रहे हैं.
डॉ. राजा  मेहता व डॉ. अनुपमा 1997 से अब तक करीब 2०,000 से अधिक सफल ओपरेशन कर चुके हैं.

  
डॉ. अशोक मित्तल, मेडिकल जर्नलिस्ट, drashokmittal.blogspot.com
facebook/ashok.mittal.37    mittal.dr@gmail.com





Sunday, March 13, 2016

यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.

यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.
A.. 27 जनवरी की शाम 7.20 बजे जयपुर- ओखा ट्रेन से हम अजमेर से रवाना हुए, द्वारका तक की 1056 km की यात्रा के लिए जो हमें अगले दिन दोपहर ढेड़ बजे तक इसी ट्रेन में तय करनी थी. ब्यावर, मारवाड़ ज., आबू, मेहसाना, विरमगाम तो सब रात में निकल गए. सुबह आठ बजे राजकोट के बाद जामनगर होते हुए जब गंतव्य की ओर रेलगाड़ी दौड़ रही थी तो खिड़की से सुदूर कहीं लम्बे लम्बे से सफ़ेद रंग के टावर से लगने वाले ढांचे नज़र आने लगे, वे जब पास आने लगे तो समझ में आया की ये तो पवन उर्जा के लिए बनाइ गयी पवन चक्कीयां हैं, जिनकी संख्या शायद लाखों में  हो ना हो, पर हाँ, हजारों में तो ज़रूर है. पास से देखने पे तीन चार मीटर लम्बी तीन-तीन पंखुडीयाँ पवन की गति अनुसार हर टावर पर घूम रही थी, खम्बे के बीच एक डाइनेमो जैसा डब्बा लगा था जिसमें से कुछ केबल निकल कर नीचे जमीन में जा रही थी, शायद सभी केबल एक जगह जाकर बिजली को इकठ्ठा करती होंगी.
यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.

B…खाम्बलिया में ट्रेन एक देड घंटे खड़ी रही, जहाँ से 77 km का सफ़र अभी भी शेष था. यहाँ से निकलने पर द्वारकाधीश मंदिर का शिखर और झंडा दूर से लहराता दिख रहा था.
1.       डेढ़ घंटे की देरी से ३ बजे द्वारका पहुंचे तो जल्दी से नहा धो कर, एक ऑटो रिक्शा में में बेठ कर जब लोकल साईट सीइंग को निकले तो एक चौराहे पर कुछ बुलेट के इंजन से बने जुगाड़ दिखे जिनमे से कुछ तो दूध की बड़ी बड़ी केन से भरे थे तो कुछ गाँव की सवारी भर भर कर ले जा रहे थे. ये बिलकुल वैसे भट-भटियाओं जैसे थे जैसे दिल्ली के चाँदनी चोक में खड़े रहते थे, हम बचपन में इनकी सवारी अक्सर करते थे, जो भट भट करके चलते थे.
यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.


2.       दो घंटे में ऑटो ने हमें सिधेश्वर महादेव, ब्रह्मा कुमारी मंदिर, गायत्री मंदिर, गीता मंदिर, सनसेट पॉइंट, भड़केश्वर महादेव, गोमती नदी, संगम स्थान आदि का भ्रमण करा कर द्वारका धीश के मंदिर के बाहर छोड़ दिया. इनमें से सिर्फ सिद्धेश्वर महादेव को छोड़ सभी स्थान समुद्र किनारे हैं.

यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.
3.       भड़केश्वर महादेव तो एक टापू पर है जहां जाने के लिए अब पक्का पुल बना दिया है. हर जगह समुद्री हवाओं की महक, लहरों का शोर और उस जगह का शांत माहोल मन पर छाया जा रहा था. समद्र के किनारे पानी के थपेड़ों से पत्थर की चट्टानें अलग अलग रंग की परतों में बहुत खूबसूरत दिख रही थीं. इनमे सिल्वर, गोल्ड, पीला, हरा आदि कई रंग परत दर परत दूर से ऐसे लग रहे थे मानो पानी भी बच्चों की तरह लहरा लहरा कर जाने अनजाने में अपने अन्दर के इन रंगों से कुछ कला कृति बनाने की कोशीश कर रहा है. 


यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.4.गीता मंदिर से सामने से देखने पर दूरी पर द्वारकाधीश का मंदिर, दाहिनी ओर लहलहाता समुद्र और बीच में निर्माणाधीन चौपाटी हेतु डाले गए त्रिभुजाकार सीमेंट के ब्लोक्स, लाल पत्थर के खम्बों व छत से बनी बाराधरी नुमा बनावट मन मुग्ध कर देने वाला दृश्य उत्पन्न कर रहे थे. 

 
  
यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.
5.साँझ ढले जब द्वारकाधीश परिसर में पहुंचे तो मंदिर की भव्यता, उसकी आकर्षक रचना, सौंदर्य और 12 मंजिल ऊँची चोटी नज़र आ रही थी. चोटी तक नज़र डालने के लिए गर्दन पूरी 90 डिग्री के कोण पर मोड़कर आँखे सीधी आसमान की ओर करनी पड़ रही थी.  शिखर की उंचाई ४३ मीटर के लगभग जिस पर 52 गज कपडे से बनी एक बड़ी पताका लहरा रही थी. जहाँ आम तौर पर झंडे के दोनों तरफ की सतह एक ही रंग की होती हैं, इस मंदिर की पताका एक ओर से केसरीया रंग व दूसरी ओर से नीली, सफ़ेद व केअसरिया रंगों की आडी धारीयों की पटटीयां लिए हुए है. हर मंजिल से बाहर झूलती बालकोनी की बारीक कारीगरी, अलग अलग डिजाइन के रोशन दान, खिडकीयां, छज्जों पर बैठे कबूतरों को देखते हुए, सिक्यूरिटी चेकिंग से गुजरने के बाद जब मुख्य मंदिर में प्रवेश किया और द्वारका धीश के दर्शन को जब नजदीक पहुंचे तो इतना मन मोहक रूप लगा की फिर वापस कतार में लग कर और दो बार उस रूप को निहारने गए. देश के हर प्रान्त के यात्री वहाँ आये हुए थे. आरती के समय जो जहाँ था वहीँ खड़ा रहा, कतार भी बंद थी, काफी व्यवस्थित था सब कुछ.
   
यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.
6.कहते है इस मंदिर का निर्माण श्री कृष्णा के पड़-पौत्र वज्रनाभ ने 2500 वर्ष पूर्व करवाया था. इसके दो द्वार हैं, स्वर्ग द्वार व मोक्ष द्वार. गोमती नदी का सागर से जहाँ संगम हो रहा है, वहीँ निरमित इस का मोक्ष द्वार 56 सीडी नीचे उतर कर सागर की तरफ ले जाता है. वहां आजकल एक विशाल सुदामा पुल का निर्माण किया गया है, जहां जाना वर्जित था क्योंकि उचित नेता के अभाव में उसका लोकार्पण अभी नहीं हुआ है.

 

7.मंदिर से बाहर आते ही हम उस फोटोग्राफर को ढूढने लगे जिसने 20 रूपये में हमारी फोटो खींची थी, वो तो नहीं मिला लेकिन दूसरे किसी फोटोग्राफर ने हमें पहचान लिया और उसे लाकर हमसे मिलवा दिया. बहुत सुन्दर फोटो निकाली थी उसने.

परिसर के बाहर पुष्कर जैसी संकरी, छोटी लेकिन साफ़ सुथरी गलियाँ हैं जिनमे यात्रियों की ज़रुरत की हर वस्तु उपलब्ध है. वहीँ एक रेस्टोरेंट में रात्रि भोजन करके अपने रूम पर आ गए, सुबह आठ बजे फिर रवाना होना था, बेट द्वारका व मूल द्वारका की यात्रा पर जाने हेतु.


Saturday, March 5, 2016

माँ को समर्पित! "माँ तेरे बिना दुनिया की हर चीज कोरी है! दुनिया का सबसे मधुर संगीत तेरी लोरी है"!!

माँ को समर्पित!
०१ मार्च २०१६, सायंकाल ६ बजे जब चिता की अग्नि अपने चरम पे थी, मुक्ति धाम से लोटते वक़्त उस तरफ नज़रे डाल कर एक पल को देखा तो ऐसा आभास हुआ की ये मम्मी में जो जीवंत ऊर्जा थी उसके आखरी दर्शन हैं. दिल से उस उर्जा को आख़री सलाम किया.
मम्मी की आत्मा तो इस श्रृष्टि के रचयेता में या इसकी ऊर्जा में पहले से ही विलीन हो चुकी थी जब प्रातः साड़े तीन बजे उसने संसार छोड़ने से पूर्व मेरी प्रेम जीजी व छोटे भाई अरुण (गुड्डू) ये कहा था कि “तेरे पापा लेने आ गए हैं, बेटा- अब में जा रही हूँ.” मैं और अंकुर तुरंत अस्पताल पहुंचे लेकिन उस पवित्र शरीर में मम्मी नहीं थी.
दो दिन पहले ही मुंबई से फोन करके मुझे कहा कि “मेरा वक़्त आ गया है, तू मुझे अजमेर ले चल, मैं वहीँ से वैकुंट धाम जाउंगी” गुड्डू फ़ौरन उसे फ्लाईट से अजमेर ले आया.
मेरे यहाँ डॉ एस के अरोड़ा सर, डॉ पीयूष अरोड़ा व डॉ अंकुर ने पूरे तन, मन, धन से मम्मी की सेवा शुरू कर दी. खांसी भी ठीक हो गई थी. लेकिन २९ फ़रवरी, सोमवार को सुबह पेशाब आना बंद हो गया.
आखरी के 17 –18 घंटे पुष्कर रोड स्थित मित्तल अस्पताल में गुजारे जहाँ चिकित्सकों ने प्यार व सम्मान सहित मम्मी का पूरे मन से इलाज़ शुरू किया. डॉ दिलीप मित्तल के सहयोग का तो में कायल हो गया. एसा लगा जैसे में अपने ही घर में हूँ. डॉ विवेक माथुर, डॉ प्रमोद दाधीच, डॉ दीपक सोगानी, डॉ संजीव महरा, डॉ संजय पाटिल, डॉ मिली आदि को मैं तहे दिल से धन्यवाद देते हुए दुआ करता हूँ की उनके हाथों पीड़ित मानव की अधिक से अधिक सेवा हो.
मम्मी के दीवानों की लम्बी-चोड़ी फौज में से हर परिज़न, मित्र, पडौसी अब ये साबित करने में लगा हुआ  है की वो ही उसका सबसे ज्यादा लाडला रहा. हर कोई अपनी ज़िन्दगी के उन पलों का ज़िक्र कर रहा है जिससे ये साबित हो सके की मम्मी उसे ही सबसे ज्यादा चाहती थी. लेकिन मैं जानता हूँ सब उसके लिए बराबरी के प्यारे थे.
कहाँ किसी पत्थर के सजदे से इनायतें बरसात होती है?
खुदा भी उतर आता है फलक से, जब माँ की दुआएं साथ होती हैं.
मेरे चिकित्सकीय जीवन में कई क्षण ऐसे आये जब मरीजों की नकारात्मक सोच या उनकी परेशानी के बारे में सोच कर मेरा मन विचलित हो जाता था तो गुस्सा और खीज होती थी, जिसके परिणाम स्वरुप मैं मम्मी से भी उल-जलूल लड़ लेता था. इश्वर से भी अक्सर खूब लड़ता था. लेकिन वो न तो कभी प्रकट हुआ और न ही कभी छू कर या कह कर मुझे कभी सांत्वना दी. इस मामले में मम्मी का कोई सानी नहीं. हमेशा मेरी परेशानी अपने में समा लेती, डाडस भी बंधाती थी. यानी कई मामलों में इश्वर से भी एक कदम आगे.
माँ तेरे बिना दुनिया की हर चीज कोरी है!
दुनिया का सबसे मधुर संगीत तेरी लोरी है!!
माँ तो माँ ही होती है. उसका स्थान दुनिया के हर रिश्ते से ऊंचा है. अब में किससे लडूंगा?? ये सवाल अब अनुत्तरित रहेगा. लेकिन उसका आशीर्वाद साथ है, ये तो निश्चित है..

डॉ अशोक मित्तल ०६ फ़रवरी, २०१६