Saturday, March 5, 2016

माँ को समर्पित! "माँ तेरे बिना दुनिया की हर चीज कोरी है! दुनिया का सबसे मधुर संगीत तेरी लोरी है"!!

माँ को समर्पित!
०१ मार्च २०१६, सायंकाल ६ बजे जब चिता की अग्नि अपने चरम पे थी, मुक्ति धाम से लोटते वक़्त उस तरफ नज़रे डाल कर एक पल को देखा तो ऐसा आभास हुआ की ये मम्मी में जो जीवंत ऊर्जा थी उसके आखरी दर्शन हैं. दिल से उस उर्जा को आख़री सलाम किया.
मम्मी की आत्मा तो इस श्रृष्टि के रचयेता में या इसकी ऊर्जा में पहले से ही विलीन हो चुकी थी जब प्रातः साड़े तीन बजे उसने संसार छोड़ने से पूर्व मेरी प्रेम जीजी व छोटे भाई अरुण (गुड्डू) ये कहा था कि “तेरे पापा लेने आ गए हैं, बेटा- अब में जा रही हूँ.” मैं और अंकुर तुरंत अस्पताल पहुंचे लेकिन उस पवित्र शरीर में मम्मी नहीं थी.
दो दिन पहले ही मुंबई से फोन करके मुझे कहा कि “मेरा वक़्त आ गया है, तू मुझे अजमेर ले चल, मैं वहीँ से वैकुंट धाम जाउंगी” गुड्डू फ़ौरन उसे फ्लाईट से अजमेर ले आया.
मेरे यहाँ डॉ एस के अरोड़ा सर, डॉ पीयूष अरोड़ा व डॉ अंकुर ने पूरे तन, मन, धन से मम्मी की सेवा शुरू कर दी. खांसी भी ठीक हो गई थी. लेकिन २९ फ़रवरी, सोमवार को सुबह पेशाब आना बंद हो गया.
आखरी के 17 –18 घंटे पुष्कर रोड स्थित मित्तल अस्पताल में गुजारे जहाँ चिकित्सकों ने प्यार व सम्मान सहित मम्मी का पूरे मन से इलाज़ शुरू किया. डॉ दिलीप मित्तल के सहयोग का तो में कायल हो गया. एसा लगा जैसे में अपने ही घर में हूँ. डॉ विवेक माथुर, डॉ प्रमोद दाधीच, डॉ दीपक सोगानी, डॉ संजीव महरा, डॉ संजय पाटिल, डॉ मिली आदि को मैं तहे दिल से धन्यवाद देते हुए दुआ करता हूँ की उनके हाथों पीड़ित मानव की अधिक से अधिक सेवा हो.
मम्मी के दीवानों की लम्बी-चोड़ी फौज में से हर परिज़न, मित्र, पडौसी अब ये साबित करने में लगा हुआ  है की वो ही उसका सबसे ज्यादा लाडला रहा. हर कोई अपनी ज़िन्दगी के उन पलों का ज़िक्र कर रहा है जिससे ये साबित हो सके की मम्मी उसे ही सबसे ज्यादा चाहती थी. लेकिन मैं जानता हूँ सब उसके लिए बराबरी के प्यारे थे.
कहाँ किसी पत्थर के सजदे से इनायतें बरसात होती है?
खुदा भी उतर आता है फलक से, जब माँ की दुआएं साथ होती हैं.
मेरे चिकित्सकीय जीवन में कई क्षण ऐसे आये जब मरीजों की नकारात्मक सोच या उनकी परेशानी के बारे में सोच कर मेरा मन विचलित हो जाता था तो गुस्सा और खीज होती थी, जिसके परिणाम स्वरुप मैं मम्मी से भी उल-जलूल लड़ लेता था. इश्वर से भी अक्सर खूब लड़ता था. लेकिन वो न तो कभी प्रकट हुआ और न ही कभी छू कर या कह कर मुझे कभी सांत्वना दी. इस मामले में मम्मी का कोई सानी नहीं. हमेशा मेरी परेशानी अपने में समा लेती, डाडस भी बंधाती थी. यानी कई मामलों में इश्वर से भी एक कदम आगे.
माँ तेरे बिना दुनिया की हर चीज कोरी है!
दुनिया का सबसे मधुर संगीत तेरी लोरी है!!
माँ तो माँ ही होती है. उसका स्थान दुनिया के हर रिश्ते से ऊंचा है. अब में किससे लडूंगा?? ये सवाल अब अनुत्तरित रहेगा. लेकिन उसका आशीर्वाद साथ है, ये तो निश्चित है..

डॉ अशोक मित्तल ०६ फ़रवरी, २०१६ 

3 comments:

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  2. माँ हम सब आपको बहुत बहुत याद कर रहे है।आपके बिना सब खोया खोया सा लग रहा है।😥😥🙏

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  3. माँ हम सब आपको बहुत बहुत याद कर रहे है।आपके बिना सब खोया खोया सा लग रहा है।😥😥🙏

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