Monday, February 15, 2016

कल्पना से परे है सफ़ेद रण का द्रश्य !

कल्पना से परे है सफ़ेद रण का द्रश्य !१. ३१ जनवरी को हमें कच्छ के सफ़ेद रण जाने का सौभाग्य मिला, इस यात्रा के माध्यम बने मेरे मित्र दीपक विधानी के पुत्र, पुत्रवधू व नन्हा बच्चा आरू. गांधीधाम से करीब २०० km की दूरी २.३० घंटे में कार से तय की. गंतव्य पर पहुँचने के बहुत पहले ही करीब ६० km से हमें स्वागत द्वार नज़र आने लगे, जिन पर सफ़ेद रण के ब्रांड एम्बेसडर अमिताभ बच्चन के पोस्टर विभिन्न मुद्राओं में हमें आकर्षित कर रहे थे.
२. जब सफ़ेद रण के मुख्य द्वार से अन्दर पहुंचे तो एक बहुत ही विशाल शहरनुमा नज़ारा दिखा जहाँ सब कुछ टेंटों से बनाया हुआ था, पक्का निर्माण कहीं नहीं था. रहने के लिए ५०००/ प्रति दिन से लेकर एक लाख रुपए प्रति दिन के फाइव स्टार टेंट भी उपलब्ध थे. बड़े बड़े बाज़ार दोनों ओर बने थे जहाँ हाथ करघा, क्राफ्ट, आर्ट, बैंक, ऐ.टी.एम्, खाने पीने के स्टाल, आकर्षक झांकियां जिनमे स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया आदि के सन्देश थे. इनमें सबसे आकर्षक सीन था महात्मा गाँधी की मूर्ति को हाथ में झाड़ू लेकर सफाई करते हुए दिखाया जाना.
कल्पना से परे है सफ़ेद रण का द्रश्य !
चूँकि कच्छ के इस सफ़ेद रण को जाने के वास्ते सिर्फ २ ही महीनों का वक़्त होता है, बाकी समय यहाँ समुद्र का पानी वापस भर जाता है, अतः यहाँ सब कुछ कच्चे निर्माण की रूप में था, लेकिन था अतुलनीय और अकल्पनीय.
कार पार्किंग के बाद करीब २ km तक पैदल या घुड सवारी या ऊंट गाडी द्वारा सफ़ेद रण तक पहूँचने के तीन विकल्प थे हमारे पास. हमने ऊँट गाड़ी को चुना. बच्चों और बूदों की सांगत में हां हूँ करते करते लास्ट पॉइंट पर जब उतरे और जमीन पर पैर रखे तो एहसास हुआ की हम रेत के समंदर में नहीं, पानी के समंदर में नहीं बल्कि नमक के समंदर में पहुँच गए थे. बहुत कौतिहल जाग रहा था मन में जब में अपने जूतों से उस नमक को थोक थोक कर, उछाल उछाल कर निश्चय कर लेना चाहता था की ये वाकई नमक ही है. जब कोई शक नहीं बचा की वो नमक ही है तो भी विश्वास नहीं हो रहा था.













कल्पना से परे है सफ़ेद रण का द्रश्य !
३. सेंकडों लोग वहां अलग अलग ग्रुप्स में आये हुए थे, बच्चे भाग दौड़ कर रहे थे, कोई पतंगबाजी, कोई बेडमिन्टन, कोई दरी बिछा कर ताश तो कोई वहां के लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत लोकगीतों, नृत्यों का आनंद ले रहे थे. हम प्रकर्ति के अनुपम दृश्यों को निहारने व केमरे में उन्हें किस कर लेने में मशगुल थे.
अमिताभ बच्चन के एक पोस्टर में जिसमे वे बांये हाथ में लकड़ी लिए, मुस्कुराते हुए दाहिने हाथ से पधारो सा वाला एक्शन करते दिखे तो मुझे एक शरारत सूझी, मैंने आइडीया से अपना दाहिना हाथ उनके लकड़ी वाले हाथ पर रख कर नविन को क्लीक करने को कहा. अमिताभ की फोटो के संग मेरी भी एक याद दाश्त फोटो खिंच गयी.
एक जगह रॉयल एनफील्ड का वो जुगाड़ भी दिख गया जिसे अमिताभ ने शूटिंग के दोरान चलाया था, हम दोनों ने भी उसकी सवारी का लुत्फ़ उठाया जिसे नवीन ने अपने केमरे से क्लिक किया और ईमेल से मुझे भेज दिया. ये फोटो मुझे इतना अधिक पसंद आया की मैंने अपना facebook स्टेटस अपडेट कर पुराने राजस्थानी जुगाड़ वाले फोटो की जगह इससे रीप्लेस कर दिया. ये फोटो वो सारे भाव, सुकून, ख़ुशी बयान कर रही है जो हमें वहाँ मेहसूस हो रहे थे और जिन्हें शब्दों में समेटना नामुमकिन है.
कल्पना से परे है सफ़ेद रण का द्रश्य !
४. दिन ढल रहा था, मन लौटने को नहीं मान रहा था पर उधर सूरज ढलते ढलते सुदूर कहीं नमक के क्षितिज में डूब रहा था, मन ही मन नवीन, रानू, आरू के प्यारे साथ को धन्यवाद देते हुए और सफ़ेद रण को अलविदा कहते, बाय बाय करते हम पुनः गांधीधाम के ढाई घंटे के सफ़र के लिए कार पार्किंग की ओर कदम बड़ाने लगे. मन में ये विचार चल रहे थे की अजमेर पहुँचते ही सभी परिवार के सदस्यों व मित्रों से इन सुखद एहसासों को, प्रकर्ति के इन अनमोल खजानों से मिली अनुभूति को शेयर करूंगा. लेकिन लोटते ही वाइरल फीवर से पीड़ित होने के कारण आज में आप सब को ये संस्मरण अर्पित करता हूँ, आप सब भी नेचर के भिन्न भिन्न रूपों का समय समय पर आनंद लेते रहें और स्वयं में नयी ऊर्जा का संचार करते रहें.
इस क्रम में अजमेर वासी एक बार सुबह जरूर से चोपाटी, बारादरी, राम प्रसाद घाट या रीजनल कालेज वाली नयी चोपाटी से आनासागर के विभिन्न मनोरम दृश्य ज़रूर देखें.

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