Saturday, November 28, 2015

क्या परिज़नों के विरोध प्रकट करने का तरीका शांति पूर्ण नहीं हो सकता?



क्या परिज़नों के विरोध प्रकट करने का तरीका शांति पूर्ण नहीं हो सकता?
जिस तरह दो पत्रकार अक्सर एक ही घटना पर भिन्न भिन्न राय देते नज़र आते हैं. जो की कितनी भी विरोधाभासी हो, इसे प्रकट करने का माध्यम शब्द ही होते हैं जो या तो उनकी कलम द्वारा हमें लिखित रूप में पड़ने को मिलते है या रेडियो टीवी द्वारा सुनने को मिलते हैं. इसी तरह दो वकील अपने अपने मुवक्किल के पक्ष में कोर्ट में प्रस्तुत वाद को मौखिक या लिखित रूप में दायर करते हैं, लम्बी लम्बी बहस भी करते हैं, लेकिन हमेशा मर्यादा में रहकर. कभी भी तैश में आना या चिल्ला कर माहोल बिगाड़ना या उत्तेजित हो कर अप-शब्द कहना, हाथापाई जैसी घटना न तो होती हैं और न ही कानूनन इसकी इजाज़त व इसमें ढील दी जाती है.
तो फिर डॉक्टरों व अस्पतालों में ये सब तमाशे क्यों होते हैं रोज़ रोज़? भीड़ इकठ्ठी होना, नारे बाजी, अस्पताल कर्मियों से गाली गलोच, हाथ पाई, थप्पड़, पुलिस केस?? क्या ये सभ्य समाज की निशानी है??
पुष्कर रोड स्थित मित्तल अस्पताल में हाल ही मे हुए हंगामे व डॉक्टर की गिरफ्तारी को किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है. हो सकता है सम्प्रेषण (Communication) की कमी रही हो. इसमें कोई शक नहीं की ओपन हार्ट सर्जरी के बाद मरीज़ को शुरू के 4 – 6 दिन वेंटिलेटर पर ही रखा जाता है. मृत्यु कब हुई इस का उत्तर भी पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट से करीब करीब सटीक पता चल जाता है.
ये भी सर्वथा सत्य है की जिसके परिज़न  की मौत होती है वो परिवार सदमे में, गहरे दुःख व मानसिक अवसाद में डूब जाता है, हम सब की पूर्ण संवेदना है उन के साथ. लेकिन और भी मरीज़ जो वहां उपचार रत हैं, भर्ती हैं क्या वे किसी के माई-बाप, भाई-बहन नहीं, क्या वे हमारे शहर के अपने नहीं या क्या वे मनुष्य नहीं? उनका शांति पूर्ण तरीके से स्वास्थ्य लाभ लेने का हक़ कोई भी कैसे छीन सकता है ?? वो भी हंगामा, गाली गलोच, तोड़ फोड़  या  मार-पीट आदि करके ?? शहर के सभी प्रबुद्ध नागरिकों व संस्थाओं को ऐसी परिस्थिति में सहिष्णुता, ज़िम्मेदारी, धैर्य  व सकारात्मकता का परिचय देते हुए शांति पूर्ण तरीके से समस्याओं का समाधान करना चाहिए.
एक छोटे से शहर में दिल के ऑपरेशन संभव होना इस शहर का सोभाग्य है वरना अजमेर से बड़े शहरों की और भाग भाग कर अपने परिज़नों को हार्ट अटैक पश्चात ले कर जाते हुए, फिर बीच रास्ते से ही उन्हें लौटा कर लाते हुए, कई हादसे आये दिन सुनने में आते रहते थे.
आम आदमी से लेकर कई ख़ास हस्तियाँ जिन्हें इस हार्ट शल्यचिकित्सा का लाभ मिला और आज स्वत्स्थ हैं, जीवित हैं, वे कितने कृतज्ञ होंगे!! इन भावनाओं को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, शब्दों में नहीं समेटा जा सकता. ऐसा जोखिम भरा ऑपरेशन करने वाले, दिल की चीरफाड़ करने वाले डॉक्टर इस विध्या में पारंगत होने में अपना सम्पूर्ण जीवन लगा देते है. और जीवन पर्यंत प्रतिबद्ध रहते हैं.
अस्पताल व मरीज़ के परिज़न दोनों को ही अपनी अपनी बातों, समस्याओं को साथ बैठकर सुलझानी चाहिए. जिससे की किसी भी मरीज, परिजन व अस्पताल को भविष्य में परेशानी न हो व चिकित्सक भी बेख़ौफ़ हो कर पीड़ितों की सेवा कर सके.  २८ नव २०१५ डा. अशोक मित्तल, मेडिकल जौर्नालिस्ट

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