सावधान!
जीवन दाई औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!
सर्व प्रथम तो मैं ये स्पष्ट कर दूं कि मेरा ये ब्लॉग किसी भी डॉक्टर के खिलाफ व्यक्तिगत इर्ष्या वश न होकर मेरे लम्बे चिकित्सकीय अनुभव से प्रेरित है और जीवन के उन कडवे अनुभवों में से एक है जब मैनें अपने आप को असहाय महसूस किया यह समझने में की मरीज क्यों इन दवाओं का सेवन कर रहा है या कई डॉक्टर्स क्यों बेपरवाह होकर इन जीवन रक्षक दवाओं को बात-बात में हर छोटी-छोटी बिमारी (जिसमें जुखाम तक शामिल है) में सेवन करने की सलाह नित प्रतिदिन देते रहते हैं, या क्यों अधिकतर फॅमिली डॉक्टर लाल, पीली, सफ़ेद व अन्य रंगों या गोल, चोकोर, लम्बी, तिकोने आदि अनेक आकार में उपलब्ध ये गोलिया पुडिया में बाँध कर या पीसकर पाउडर बना कर मरीज को पुडिया बाँध कर दे देते हैं ??? वो भी मरीज की बिना जानकारी में डाले की वो किस औषधि का सेवन करने जा रहा है? उसको कितने समय बाद तक लेते रहना अपनी जिंदगी से खेलने के बराबर है तथा इसके साइड इफेक्ट्स क्या हैं?? जो की बहुत भयानक हो सकते हैं.. किन अवस्थाओं जैसे गर्भावास्ता, डायबटीज, बीपी, अल्सर, ऑस्टियोपोरोसिस आदि में इन्हें नहीं लेना है???
जन हित में लिखी ये जानकारी अति आवश्यक समझ कर मैं ये ब्लॉग आप सब स्वस्थ रहें, आपमें दवाओं के बारे जानकारी रखने की आदत पड़े, इन्ही शुभ भावनाओं के साथ समर्पित कर रहा हूँ. जानकारी चूँकि लम्बी है और मैंने भी इसे अच्छे से कई दिन के सोच विचार और अध्ययन करने के पश्चात लिखना शुरू किया है. अतः इसे अलग अलग टुकड़ों में प्रेषित करना उचित होगा. वरना आप सब जल्दी ही इसे पड़ते पड़ते थक जायेंगे, बोर हो जायेंगे तो फिर इस ब्लॉग को लिखने का न तो आपको कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा और मेरी मेहनत भी व्यर्थ जाएगी.
अब आपके दिमाग में इन दवाओं के नाम, इनकी उपयोगिता, बुरे प्रभाव, बाज़ार में उपलब्ध भिन्न भिन्न नाम, डोज़ (कितने मिलीग्राम), कितने समय तक लेना सुरक्षित है?? आदि प्रश्न उत्पन्न होंगे. और उनके उत्तर जानने की उत्सुकता भी जाग्रत होगी. तो मेरे अगले ब्लॉग में इनके जवाब के साथ हाज़िर होता हूँ. (क्रमशः)
डॉ. अशोक मित्तल, 17 जनवरी 2016
जीवन दाई औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!!
सर्व प्रथम तो मैं ये स्पष्ट कर दूं कि मेरा ये ब्लॉग किसी भी डॉक्टर के खिलाफ व्यक्तिगत इर्ष्या वश न होकर मेरे लम्बे चिकित्सकीय अनुभव से प्रेरित है और जीवन के उन कडवे अनुभवों में से एक है जब मैनें अपने आप को असहाय महसूस किया यह समझने में की मरीज क्यों इन दवाओं का सेवन कर रहा है या कई डॉक्टर्स क्यों बेपरवाह होकर इन जीवन रक्षक दवाओं को बात-बात में हर छोटी-छोटी बिमारी (जिसमें जुखाम तक शामिल है) में सेवन करने की सलाह नित प्रतिदिन देते रहते हैं, या क्यों अधिकतर फॅमिली डॉक्टर लाल, पीली, सफ़ेद व अन्य रंगों या गोल, चोकोर, लम्बी, तिकोने आदि अनेक आकार में उपलब्ध ये गोलिया पुडिया में बाँध कर या पीसकर पाउडर बना कर मरीज को पुडिया बाँध कर दे देते हैं ??? वो भी मरीज की बिना जानकारी में डाले की वो किस औषधि का सेवन करने जा रहा है? उसको कितने समय बाद तक लेते रहना अपनी जिंदगी से खेलने के बराबर है तथा इसके साइड इफेक्ट्स क्या हैं?? जो की बहुत भयानक हो सकते हैं.. किन अवस्थाओं जैसे गर्भावास्ता, डायबटीज, बीपी, अल्सर, ऑस्टियोपोरोसिस आदि में इन्हें नहीं लेना है???
जन हित में लिखी ये जानकारी अति आवश्यक समझ कर मैं ये ब्लॉग आप सब स्वस्थ रहें, आपमें दवाओं के बारे जानकारी रखने की आदत पड़े, इन्ही शुभ भावनाओं के साथ समर्पित कर रहा हूँ. जानकारी चूँकि लम्बी है और मैंने भी इसे अच्छे से कई दिन के सोच विचार और अध्ययन करने के पश्चात लिखना शुरू किया है. अतः इसे अलग अलग टुकड़ों में प्रेषित करना उचित होगा. वरना आप सब जल्दी ही इसे पड़ते पड़ते थक जायेंगे, बोर हो जायेंगे तो फिर इस ब्लॉग को लिखने का न तो आपको कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा और मेरी मेहनत भी व्यर्थ जाएगी.
अब आपके दिमाग में इन दवाओं के नाम, इनकी उपयोगिता, बुरे प्रभाव, बाज़ार में उपलब्ध भिन्न भिन्न नाम, डोज़ (कितने मिलीग्राम), कितने समय तक लेना सुरक्षित है?? आदि प्रश्न उत्पन्न होंगे. और उनके उत्तर जानने की उत्सुकता भी जाग्रत होगी. तो मेरे अगले ब्लॉग में इनके जवाब के साथ हाज़िर होता हूँ. (क्रमशः)
डॉ. अशोक मित्तल, 17 जनवरी 2016
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