अकाश से पंछी फ़ड़फ़ड़ाता - तड़फता हुआ चक्कर-घिन्नी की तरह नीचे आ रहा था।
१०-१२ युवाओं की टीम तैयार थी उसके प्राथमिक उपचार हेतु।
आज, १४ जनवरी को क्लिनिक से फ्री होते ही जयपुर पहुँचने की जल्दी में बिना लंच किये ही मैं परिवार सहित दोपहर १. ३० पर रवाना हुआ। जयपुर के एम आई रोड पर अचानक ट्रैफिक रुका और अंकुर ने चिंतित स्वर में कहा "ओह!!, अरे - अरे सामने ऊपर की ओर देखो - कैसे पंछी फड़फड़ा रहा है???" एक पक्षी करीब ३० फ़ीट ऊंचाई से जमीं की ओर ओंधा लटके हुए, तेजी से गोल गोल घूम रहा था, अनुमान से वह एक डोर में अटका हुआ था जो आसमान से किसी पतंग से बंधी थी, या तो वो कोई कटी पतंग थी या उड़ाने वाले ने पंछी के अटकने पर उस की डोर तोड़ दी थी। उसके पंख तेजी से हरकत कर रहे थे, नीचे कुछ युवाओं का झुण्ड एक दूजे के कंधे पर चढ़े, हाथों में बांस लिये उसे पकड़कर, उपचार देने व जीवन दान देने के लिए बीच सड़क पर जोखिम भरे ट्रैफिक में खड़े थे।
पंछियों को ये मनुष्यों के त्योंहार और कायदे कानून का कहाँ ज्ञान है ?? वर्ना वे इन दिनों कहीं और पलायन कर लेते. सरकार ने सुबह व शाम दो दो घंटे पतंग न उड़ाने का क़ानून बनाया है, पर पक्षी दोपहर में नहीं उड़ सकते ऐसा कोई कानून या दिशा निर्देश इन भोले पंछियों को कौन दे सकता है ??? प्रकर्ती भी नहीं दे सकती ??? हाँ, सुबह अधिकतर इनके झुण्ड के झुण्ड आकाश में भोजन की तलाश में कहीं दूर जाते और शाम को वापस अपने घोंसलों में लौटते दिखाई देते हैं। लेकिन दोपहर को उड़ान भरने वाले पक्षी शायद बीमार होते होंगे या उम्र अधिक होने से लम्बी उड़ान भरने में सक्षम नहीं होते होंगे या फिट होते हुए भी उनके चूजों की परवरिश करने के लिए घोंसले में ही रूक जाते होंगे, और उनकी दिन भर की जरूरतों के लिए छोटी छोटी उड़ान भर कर इधर से उधर आते जाते होंगे। जो कुछ भी है, एक बात तो निश्चित है की मानवता जीवित है। तभी तो वो युवाओं का झुण्ड अपनी जान की परवाह किये बिना उन बेजुबानों को जान बख़्शाने के प्रयासों में सतत प्रयत्नशील है।
डॉ. अशोक मित्तल, १४ जनवरी २०१६ रात्रि १ बजे.
१०-१२ युवाओं की टीम तैयार थी उसके प्राथमिक उपचार हेतु।
आज, १४ जनवरी को क्लिनिक से फ्री होते ही जयपुर पहुँचने की जल्दी में बिना लंच किये ही मैं परिवार सहित दोपहर १. ३० पर रवाना हुआ। जयपुर के एम आई रोड पर अचानक ट्रैफिक रुका और अंकुर ने चिंतित स्वर में कहा "ओह!!, अरे - अरे सामने ऊपर की ओर देखो - कैसे पंछी फड़फड़ा रहा है???" एक पक्षी करीब ३० फ़ीट ऊंचाई से जमीं की ओर ओंधा लटके हुए, तेजी से गोल गोल घूम रहा था, अनुमान से वह एक डोर में अटका हुआ था जो आसमान से किसी पतंग से बंधी थी, या तो वो कोई कटी पतंग थी या उड़ाने वाले ने पंछी के अटकने पर उस की डोर तोड़ दी थी। उसके पंख तेजी से हरकत कर रहे थे, नीचे कुछ युवाओं का झुण्ड एक दूजे के कंधे पर चढ़े, हाथों में बांस लिये उसे पकड़कर, उपचार देने व जीवन दान देने के लिए बीच सड़क पर जोखिम भरे ट्रैफिक में खड़े थे।
पंछियों को ये मनुष्यों के त्योंहार और कायदे कानून का कहाँ ज्ञान है ?? वर्ना वे इन दिनों कहीं और पलायन कर लेते. सरकार ने सुबह व शाम दो दो घंटे पतंग न उड़ाने का क़ानून बनाया है, पर पक्षी दोपहर में नहीं उड़ सकते ऐसा कोई कानून या दिशा निर्देश इन भोले पंछियों को कौन दे सकता है ??? प्रकर्ती भी नहीं दे सकती ??? हाँ, सुबह अधिकतर इनके झुण्ड के झुण्ड आकाश में भोजन की तलाश में कहीं दूर जाते और शाम को वापस अपने घोंसलों में लौटते दिखाई देते हैं। लेकिन दोपहर को उड़ान भरने वाले पक्षी शायद बीमार होते होंगे या उम्र अधिक होने से लम्बी उड़ान भरने में सक्षम नहीं होते होंगे या फिट होते हुए भी उनके चूजों की परवरिश करने के लिए घोंसले में ही रूक जाते होंगे, और उनकी दिन भर की जरूरतों के लिए छोटी छोटी उड़ान भर कर इधर से उधर आते जाते होंगे। जो कुछ भी है, एक बात तो निश्चित है की मानवता जीवित है। तभी तो वो युवाओं का झुण्ड अपनी जान की परवाह किये बिना उन बेजुबानों को जान बख़्शाने के प्रयासों में सतत प्रयत्नशील है।
डॉ. अशोक मित्तल, १४ जनवरी २०१६ रात्रि १ बजे.
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