यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.
A.. 27 जनवरी की शाम 7.20 बजे जयपुर- ओखा ट्रेन से हम अजमेर से रवाना हुए,
द्वारका तक की 1056 km की यात्रा के लिए जो हमें अगले दिन दोपहर ढेड़ बजे तक इसी
ट्रेन में तय करनी थी. ब्यावर, मारवाड़ ज., आबू, मेहसाना, विरमगाम तो सब रात में
निकल गए. सुबह आठ बजे राजकोट के बाद जामनगर होते हुए जब गंतव्य की ओर रेलगाड़ी दौड़
रही थी तो खिड़की से सुदूर कहीं लम्बे लम्बे से सफ़ेद रंग के टावर से लगने वाले
ढांचे नज़र आने लगे, वे जब पास आने लगे तो समझ में आया की ये तो पवन उर्जा के लिए
बनाइ गयी पवन चक्कीयां हैं, जिनकी संख्या शायद लाखों में हो ना हो, पर हाँ, हजारों में तो ज़रूर है. पास
से देखने पे तीन चार मीटर लम्बी तीन-तीन पंखुडीयाँ पवन की गति अनुसार हर टावर पर
घूम रही थी, खम्बे के बीच एक डाइनेमो जैसा डब्बा लगा था जिसमें से कुछ केबल निकल कर
नीचे जमीन में जा रही थी, शायद सभी केबल एक जगह जाकर बिजली को इकठ्ठा करती होंगी.
यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.
B…खाम्बलिया में ट्रेन एक देड घंटे खड़ी रही, जहाँ से 77 km का सफ़र अभी
भी शेष था. यहाँ से निकलने पर द्वारकाधीश मंदिर का शिखर और झंडा दूर से लहराता दिख
रहा था.
1.
डेढ़ घंटे की देरी से ३ बजे द्वारका पहुंचे तो
जल्दी से नहा धो कर, एक ऑटो रिक्शा में में बेठ कर जब लोकल साईट सीइंग को निकले तो
एक चौराहे पर कुछ बुलेट के इंजन से बने जुगाड़ दिखे जिनमे से कुछ तो दूध की बड़ी बड़ी
केन से भरे थे तो कुछ गाँव की सवारी भर भर कर ले जा रहे थे. ये बिलकुल वैसे
भट-भटियाओं जैसे थे जैसे दिल्ली के चाँदनी चोक में खड़े रहते थे, हम बचपन में इनकी
सवारी अक्सर करते थे, जो भट भट करके चलते थे.
यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.
2.
दो घंटे में ऑटो ने हमें सिधेश्वर महादेव,
ब्रह्मा कुमारी मंदिर, गायत्री मंदिर, गीता मंदिर, सनसेट पॉइंट, भड़केश्वर महादेव,
गोमती नदी, संगम स्थान आदि का भ्रमण करा कर द्वारका धीश के मंदिर के बाहर छोड़
दिया. इनमें से सिर्फ सिद्धेश्वर महादेव को छोड़ सभी स्थान समुद्र किनारे हैं.
यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.
3.
भड़केश्वर महादेव तो एक टापू पर है जहां जाने के
लिए अब पक्का पुल बना दिया है. हर जगह समुद्री हवाओं की महक, लहरों का शोर और उस
जगह का शांत माहोल मन पर छाया जा रहा था. समद्र के किनारे पानी के थपेड़ों से पत्थर
की चट्टानें अलग अलग रंग की परतों में बहुत खूबसूरत दिख रही थीं. इनमे सिल्वर,
गोल्ड, पीला, हरा आदि कई रंग परत दर परत दूर से ऐसे लग रहे थे मानो पानी भी बच्चों
की तरह लहरा लहरा कर जाने अनजाने में अपने अन्दर के इन रंगों से कुछ कला कृति
बनाने की कोशीश कर रहा है.
यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.4.गीता मंदिर
से सामने से देखने पर दूरी पर द्वारकाधीश का मंदिर, दाहिनी ओर लहलहाता समुद्र और
बीच में निर्माणाधीन चौपाटी हेतु डाले गए त्रिभुजाकार सीमेंट के ब्लोक्स, लाल
पत्थर के खम्बों व छत से बनी बाराधरी नुमा बनावट मन मुग्ध कर देने वाला दृश्य
उत्पन्न कर रहे थे.
यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.
5.साँझ ढले जब द्वारकाधीश परिसर में पहुंचे तो मंदिर की भव्यता, उसकी
आकर्षक रचना, सौंदर्य और 12 मंजिल ऊँची चोटी नज़र आ रही थी. चोटी तक नज़र डालने के
लिए गर्दन पूरी 90 डिग्री के कोण पर मोड़कर आँखे सीधी आसमान की ओर करनी पड़ रही
थी. शिखर की उंचाई ४३ मीटर के लगभग जिस पर
52 गज कपडे से बनी एक बड़ी पताका लहरा रही थी. जहाँ आम तौर पर झंडे के दोनों तरफ की
सतह एक ही रंग की होती हैं, इस मंदिर की पताका एक ओर से केसरीया रंग व दूसरी ओर से
नीली, सफ़ेद व केअसरिया रंगों की आडी धारीयों की पटटीयां लिए हुए है. हर मंजिल से
बाहर झूलती बालकोनी की बारीक कारीगरी, अलग अलग डिजाइन के रोशन दान, खिडकीयां,
छज्जों पर बैठे कबूतरों को देखते हुए, सिक्यूरिटी चेकिंग से गुजरने के बाद जब
मुख्य मंदिर में प्रवेश किया और द्वारका धीश के दर्शन को जब नजदीक पहुंचे तो इतना
मन मोहक रूप लगा की फिर वापस कतार में लग कर और दो बार उस रूप को निहारने गए. देश
के हर प्रान्त के यात्री वहाँ आये हुए थे. आरती के समय जो जहाँ था वहीँ खड़ा रहा,
कतार भी बंद थी, काफी व्यवस्थित था सब कुछ.
यादगार और अनमोल लम्हे : द्वारकाधीश व सोमनाथ यात्रा के.
6.कहते है इस मंदिर का निर्माण श्री कृष्णा के पड़-पौत्र वज्रनाभ ने
2500 वर्ष पूर्व करवाया था. इसके दो द्वार हैं, स्वर्ग द्वार व मोक्ष द्वार. गोमती
नदी का सागर से जहाँ संगम हो रहा है, वहीँ निरमित इस का मोक्ष द्वार 56 सीडी नीचे
उतर कर सागर की तरफ ले जाता है. वहां आजकल एक विशाल सुदामा पुल का निर्माण किया
गया है, जहां जाना वर्जित था क्योंकि उचित नेता के अभाव में उसका लोकार्पण अभी
नहीं हुआ है.
7.मंदिर से बाहर आते ही हम उस फोटोग्राफर को ढूढने लगे जिसने 20 रूपये में हमारी फोटो खींची थी, वो तो नहीं मिला लेकिन दूसरे किसी फोटोग्राफर ने हमें
पहचान लिया और उसे लाकर हमसे मिलवा दिया. बहुत सुन्दर फोटो निकाली थी उसने.
परिसर के बाहर पुष्कर जैसी संकरी, छोटी लेकिन
साफ़ सुथरी गलियाँ हैं जिनमे यात्रियों की ज़रुरत की हर वस्तु उपलब्ध है. वहीँ एक
रेस्टोरेंट में रात्रि भोजन करके अपने रूम पर आ गए, सुबह आठ बजे फिर रवाना होना
था, बेट द्वारका व मूल द्वारका की यात्रा पर जाने हेतु.
बहुत अच्छा वर्णन किया है।पढ़कर ऐसा लग रहा है की,,हमने पढ़ने से ही सम्पूर्ण यात्रा कर ली है।बहुत ही सुन्दर प्राकृतिक दृश्य।मन को शांति प्रदान करते है।😊
ReplyDeleteबहुत अच्छा वर्णन किया है।पढ़कर ऐसा लग रहा है की,,हमने पढ़ने से ही सम्पूर्ण यात्रा कर ली है।बहुत ही सुन्दर प्राकृतिक दृश्य।मन को शांति प्रदान करते है।😊
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