फिर एक आशाराम ! इस बार देश द्रोही के रूप में। पट्रोलियम मंत्रालय में ये "आशाराम" चपरासी के कार्य के साथ साथ "टॉप सीक्रेट" दस्तावेज कॉर्पोरेट्स को उपलब्ध कराने के संगीन जुर्म में जेल भेज दिया गया।
Saturday, February 21, 2015
अजमेर के अच्छे दिन कब आएंगे ???
(1) हर वर्ष महा शिवरात्रि पर पूजा, अर्चना, ध्यान, साधना, रुद्राभिषेक, व्रत, उपवास, भंडारा, भांग, ठंडाई न जाने किन किन अन्य उपायों से महादेव को मनाने में अपनी ऊर्जा खर्च करते हैं लोग। सामूहिकता में भजन कीर्तन वो भी फ़िल्मी धुनों पर, ये भी एक विधि है उसे जगाने की, याद दिलाने की। हरेक की अपनी समस्या है उसे वो सुनता है और दूर भी करता है, तभी तो सब फ़रियाद करते हैं।
अजमेर की समस्याओं का रोना किसके आगे रोया जावे ???? ये सबसे गंभीर प्रश्न है! कौन है वो महादेव ? क्या वो मेयर है? कमिश्नर है या कलेक्टर है ? या यहां के वो चुने हुए नेता हैं जो मंत्री पदों को सुशोभित कर रहे हैं। विपक्ष में बैठे कांग्रेस के नेता हैं या सरकार से मोटी मोटी तनखा उठाने वाला सरकारी तामझाम??
अजमेर के अच्छे दिन कब आएंगे ???
(2) दूसरा प्रश्न है शहर के महादेवों की स्तुति किस विधि से की जाये, कैसे उन्हें याद दिलाया जाये की शहर दिन पर दिन कम गंदे से ज्यादा से ज्यादा गंदा हो रहा है ? आना सागर पानी से भरा है लेकिन रोजाना इसमें हज़ारों लीटर तरल, गन्दी नालियों का मिक्स हो रहा है, झील के चारों ओर जगह जगह प्लास्टिक की थैलियां एवं अन्य तरह के कचरों का ढेर, उस ढेर में से छोटे छोटे बच्चे कुछ ढूंढ़ कर - बड़े बड़े बोरों में भरते सुबह सुबह दिखते रहते है ! ये बच्चे शायद एक वक़्त की रोटी के जुगाड़ में अपनी जिंदगी की रोटी उस गन्दगी में हैं?
ऐसे कई ज्वलन्त प्रश्न आज अजमेर शहर के नागरिकों के मन में हैं ?
अजमेर के अच्छे दिन कब आएंगे ???
(3) गन्दगी और सफाई! इस समस्या को लेकर अजमेर में "रन फॉर अजमेर" नामक दौड़ में स्वच्छ और स्वस्थ अजमेर की मनो कामना लिए कई युवाओं, वृद्धों, मीडिया से पत्रकारों, कई अन्य संस्थानों के लोगों व् नगर निगम के अधिकारियों को भी बड़ चढ़ कर पूरे जोशो खरोश के साथ पटेल मैदान टू पटेल भागते देखा गया था। दिखावे के लिए शहर की मुख्य सड़कों की सफाई कर दी गयी थी। सबने अपनी अपनी पीठ थपथपाकर कहा हमने वो कर दिया जो आज तक नहीं हुआ? ये तो सही है की बहुत अच्छा काम किया। लेकिन मीडिया को ये नहीं भूलना चाहिए कि जब महादेव को ही रोज़ रोज़ अपनी समस्याएं स्मरण करानी पड़ती हैं तो आज के इन महादेवों को क्या "RUN for AJMER" की सिर्फ एक डोज़ काफी है?
अजमेर के अच्छे दिन कब आएंगे ???
(4) जनता जनारदन के लिए तो मीडिया ही है नारद मुनि, जो कहीं भी जाकर जनसाधारण की बात सत्ता और पदों पर बैठे इन आज के महादेवों तक पहुंचा सकते हैं, उनसे मनवा सकते हैं। तो निष्कर्ष ये निकला कि प्रजा का महादेव तो मीडिया ही है। अजमेर का मीडिया और नागरिक दोनों साथ साथ जागें, आवाज़ बुलंद करें तो ही कुछ शहर के साफ़ होने की, विकास / प्रगति (ये भी बहस का मुद्दा है - क्या हो !!) होने की संभावना है।
(5) याने कि जनता मीडिया से, मीडिया पदाधिकारियों तक अपनी बात पहुंचाए। यहाँ "हम लोग" यह भी समझ लें कि आज का सबसे पावरफुल मीडिया है - सोशल मीडिया। जिसने आम आदमी की मीडिया पर निर्भरता को नगण्य सा कर दिया है। इ-मेल, फेसबुक, व्हट्सऐप, बल्क ऐस.एम.एस, ब्लॉग, फोटो अटेचमेंट, वॉइस् मेल, विडिओ मेल आदि आपके हाथ में देकर। समझो हर व्यक्ति के हाथ में कलम है, अखबार है, चैनल है, अपना खुद का मीडिया है। अपनी आवाज़ उठाने के साधन हैं।
मैनें एक समस्या और उसका साधन आपके हाथ में ही है ऐसा आपको बताने का प्रयास किया है। यदि आप भी अजमेर के लिए सोचते हैं तो आइये और करिये इस का उपयोग।
डॉ. अशोक मित्तल, 20 फर. 15
(1) हर वर्ष महा शिवरात्रि पर पूजा, अर्चना, ध्यान, साधना, रुद्राभिषेक, व्रत, उपवास, भंडारा, भांग, ठंडाई न जाने किन किन अन्य उपायों से महादेव को मनाने में अपनी ऊर्जा खर्च करते हैं लोग। सामूहिकता में भजन कीर्तन वो भी फ़िल्मी धुनों पर, ये भी एक विधि है उसे जगाने की, याद दिलाने की। हरेक की अपनी समस्या है उसे वो सुनता है और दूर भी करता है, तभी तो सब फ़रियाद करते हैं।
अजमेर की समस्याओं का रोना किसके आगे रोया जावे ???? ये सबसे गंभीर प्रश्न है! कौन है वो महादेव ? क्या वो मेयर है? कमिश्नर है या कलेक्टर है ? या यहां के वो चुने हुए नेता हैं जो मंत्री पदों को सुशोभित कर रहे हैं। विपक्ष में बैठे कांग्रेस के नेता हैं या सरकार से मोटी मोटी तनखा उठाने वाला सरकारी तामझाम??
अजमेर के अच्छे दिन कब आएंगे ???
(2) दूसरा प्रश्न है शहर के महादेवों की स्तुति किस विधि से की जाये, कैसे उन्हें याद दिलाया जाये की शहर दिन पर दिन कम गंदे से ज्यादा से ज्यादा गंदा हो रहा है ? आना सागर पानी से भरा है लेकिन रोजाना इसमें हज़ारों लीटर तरल, गन्दी नालियों का मिक्स हो रहा है, झील के चारों ओर जगह जगह प्लास्टिक की थैलियां एवं अन्य तरह के कचरों का ढेर, उस ढेर में से छोटे छोटे बच्चे कुछ ढूंढ़ कर - बड़े बड़े बोरों में भरते सुबह सुबह दिखते रहते है ! ये बच्चे शायद एक वक़्त की रोटी के जुगाड़ में अपनी जिंदगी की रोटी उस गन्दगी में हैं?
ऐसे कई ज्वलन्त प्रश्न आज अजमेर शहर के नागरिकों के मन में हैं ?
अजमेर के अच्छे दिन कब आएंगे ???
(3) गन्दगी और सफाई! इस समस्या को लेकर अजमेर में "रन फॉर अजमेर" नामक दौड़ में स्वच्छ और स्वस्थ अजमेर की मनो कामना लिए कई युवाओं, वृद्धों, मीडिया से पत्रकारों, कई अन्य संस्थानों के लोगों व् नगर निगम के अधिकारियों को भी बड़ चढ़ कर पूरे जोशो खरोश के साथ पटेल मैदान टू पटेल भागते देखा गया था। दिखावे के लिए शहर की मुख्य सड़कों की सफाई कर दी गयी थी। सबने अपनी अपनी पीठ थपथपाकर कहा हमने वो कर दिया जो आज तक नहीं हुआ? ये तो सही है की बहुत अच्छा काम किया। लेकिन मीडिया को ये नहीं भूलना चाहिए कि जब महादेव को ही रोज़ रोज़ अपनी समस्याएं स्मरण करानी पड़ती हैं तो आज के इन महादेवों को क्या "RUN for AJMER" की सिर्फ एक डोज़ काफी है?
अजमेर के अच्छे दिन कब आएंगे ???
(4) जनता जनारदन के लिए तो मीडिया ही है नारद मुनि, जो कहीं भी जाकर जनसाधारण की बात सत्ता और पदों पर बैठे इन आज के महादेवों तक पहुंचा सकते हैं, उनसे मनवा सकते हैं। तो निष्कर्ष ये निकला कि प्रजा का महादेव तो मीडिया ही है। अजमेर का मीडिया और नागरिक दोनों साथ साथ जागें, आवाज़ बुलंद करें तो ही कुछ शहर के साफ़ होने की, विकास / प्रगति (ये भी बहस का मुद्दा है - क्या हो !!) होने की संभावना है।
(5) याने कि जनता मीडिया से, मीडिया पदाधिकारियों तक अपनी बात पहुंचाए। यहाँ "हम लोग" यह भी समझ लें कि आज का सबसे पावरफुल मीडिया है - सोशल मीडिया। जिसने आम आदमी की मीडिया पर निर्भरता को नगण्य सा कर दिया है। इ-मेल, फेसबुक, व्हट्सऐप, बल्क ऐस.एम.एस, ब्लॉग, फोटो अटेचमेंट, वॉइस् मेल, विडिओ मेल आदि आपके हाथ में देकर। समझो हर व्यक्ति के हाथ में कलम है, अखबार है, चैनल है, अपना खुद का मीडिया है। अपनी आवाज़ उठाने के साधन हैं।
मैनें एक समस्या और उसका साधन आपके हाथ में ही है ऐसा आपको बताने का प्रयास किया है। यदि आप भी अजमेर के लिए सोचते हैं तो आइये और करिये इस का उपयोग।
डॉ. अशोक मित्तल, 20 फर. 15
Thursday, February 19, 2015
अच्छे दिन आने शुरू हो गए हैं !!!
मोदी जी के १० लाख के सूट ने सबको अच्छे दिनों का अहसास कराया । सूट
पहन कर ओबामा से चाय पर चर्चा। सूट पर अलग अलग रानीतिक दलों के नेताओं
द्वारा कसे गए तानों की चर्चा। कीमत को लेकर चर्चा। कीमत के कयास लगे सात
लाख से दस लाख। कहाँ से आया, किसने सिला, क्या लिखा है, कहाँ नाम लिखा है ?
क्यों इतना महँगा? संसार में और किस नेता ने ऐसा नाम लिखा कपड़ा पहना?
कई तरह की भिन्न भिन्न प्रतिक्रियाएं और विचार मंथन। पूरा मीडिया और पूरा
इंडिया मानो इस "चर्चा रुपी स्वाइन फ्लू" से ग्रस्त हो गया।
मोदी जी ने भी अब सबको दी टेमीफ्लू रुपी गोली, लगवाकर उसी सूट की बोली। सूट की अकेले की बोली सवा करोड़ से ऊपर पहुंची है। अन्य गिफ्टों से धन आएगा सो अलग। सारा पैसा चेरिटी में दान दे दिया जाएगा। याने कुछ एक जरुरत मंदों के तो अच्छे दिन आना पक्का ही है।
अन्य
नेता भी अब तक ऐसा करते या आज से भी इस से सबक लेकर अनुसरण करें तो
उम्मीद ही नहीं पक्की गारंटी है की सबके अच्छे दिन आएंगे !!!!मोदी जी ने भी अब सबको दी टेमीफ्लू रुपी गोली, लगवाकर उसी सूट की बोली। सूट की अकेले की बोली सवा करोड़ से ऊपर पहुंची है। अन्य गिफ्टों से धन आएगा सो अलग। सारा पैसा चेरिटी में दान दे दिया जाएगा। याने कुछ एक जरुरत मंदों के तो अच्छे दिन आना पक्का ही है।
डॉ. अशोक मित्तल 19 -02 -2015
Tuesday, February 10, 2015
Monday, February 9, 2015
Sunday, February 8, 2015
स्वाइन फ्लू से बचाव :- व्हाट्स-एप पर कपूर + इलायची को सूंघने या फिर
गिलोय का अर्क बना कर पीने जैसे कई भांति भांति के फॉर्मूलों के सन्देश आ
रहे हैं। मैंने आयुर्वेदाचार्यों से इस बारे में चर्चा की तो उन्होंने
बताया कि उपरोक्त उपाय या फॉर्मूलों का कोई ठोस आधार नहीं है। बल्कि उन्होंने जो राय दी वह निम्न है:-
१. भूखे पेट घर से नहीं निकलें . २. धूणी के रूप में पूरे घर में नीम की सूखी पत्ती + गूगल का धूआँ रोज़ करना चाहिए। ३. दसमूलरारिष्ट व महारासादि की २ - २ चम्मच सुबह शाम लेनी चाहिए। ४. काढ़ा - १० पत्ते तुलसी, १० काली मिर्च, १ लोंग, १ चुटकी हल्दी, १ टुकड़ा अदरक, को १ गिलास पानी में उबाल कर सेवन करने से रोग निरोधक क्षमता बढ़ेगी। ५. मास्क का उपयोग ६. भीड़ भाड़ से दूर ७. खांसते - छींकते वक़्त मुंह पर रूमाल रखें
एलोपेथी में टेमीफ्लू (ओसेल्टामिविर) की गोली बचाव व उपचार दोनों में भिन्न भिन्न मात्रा में दी जाती है।जो सरकारी अस्पतालों में मरीज़ को फ्री दी जाती है।
डॉ. अशोक मित्तल। ०७-०२-२०१५
१. भूखे पेट घर से नहीं निकलें . २. धूणी के रूप में पूरे घर में नीम की सूखी पत्ती + गूगल का धूआँ रोज़ करना चाहिए। ३. दसमूलरारिष्ट व महारासादि की २ - २ चम्मच सुबह शाम लेनी चाहिए। ४. काढ़ा - १० पत्ते तुलसी, १० काली मिर्च, १ लोंग, १ चुटकी हल्दी, १ टुकड़ा अदरक, को १ गिलास पानी में उबाल कर सेवन करने से रोग निरोधक क्षमता बढ़ेगी। ५. मास्क का उपयोग ६. भीड़ भाड़ से दूर ७. खांसते - छींकते वक़्त मुंह पर रूमाल रखें
एलोपेथी में टेमीफ्लू (ओसेल्टामिविर) की गोली बचाव व उपचार दोनों में भिन्न भिन्न मात्रा में दी जाती है।जो सरकारी अस्पतालों में मरीज़ को फ्री दी जाती है।
डॉ. अशोक मित्तल। ०७-०२-२०१५
Saturday, February 7, 2015
स्वाइन फ्ल्यू :- जहाँ एक ओर दुनिया इसे सर्वाधिक अर्जेंट मान कर कार्य कर रही है वहीं दूसरी और क्या हम दिखावा और ढिंढोरा वाली पुरानी नीति अपना कर जनता को मूर्ख बना रहे हैं।
स्वाइन फ्ल्यू :- क्या हम दिखावा और ढिंढोरा वाली पुरानी नीति अपना कर जनता को मूर्ख बना रहे हैं?
१. स्वाइन फ्ल्यू का टींका इस बार इतना कारगर नहीं है। वाइरस के म्युटेशन की वज़ह से। एच १ इन १ का म्युटेशन होकर ऐच ३ एन आने का अंदेशा है।
२. आज ४३ देशों में इसका आतंक छाया हुआ है।
३. इसकी महामारी ने अमेरिका में १५ बच्चों को निगल लिया है।
४. अमेरिका का सी.डी.सी. याने सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल हर हफ्ते स्वाइन फ्ल्यू पर साप्ताहिक अपडेट देता है।
इंडिया में स्वाइन पर आखरी गाइड लाइन भारत सरकार ने २००९ में दी थी।
५. अमेरिका में हर सिटीजन इसके उपचार, टेस्ट, दवा आदि की जानकारी स्मार्ट फ़ोन के विभिन्न एप्प्स - CDC Influenza, Flu Defender, Everyday Health Flu Map website, पर है।
जबकि हमारे यहां घोर अन्धेरा है. याने darkness.com का वर्चस्व है।
५. Urgent Care 24/7 Medical Help: द्वारा किसी भी वक़्त आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते है। यह एप उन डॉक्टर्स का रजिस्टर रखता है जो उस समय पर सेवा देने हेतु उबलब्ध होते हैं।
यहाँ सरकारी महकमे के अलावा जानकारी किसी को नहीं है. प्राइवेट अस्पताल या डॉक्टर्स को कोई दिशा निर्देश नहीं ज़ारी हुए हैं आज तक ।
याने जहाँ एक ओर दुनिया इसे सर्वाधिक अर्जेंट मान कर कार्य कर रही है वहीं दूसरी और क्या हम दिखावा और ढिंढोरा वाली पुरानी नीति अपना कर जनता को मूर्ख बना रहे है?
डॉ. अशोक मित्तल। ०८-०२-२०१५
१. स्वाइन फ्ल्यू का टींका इस बार इतना कारगर नहीं है। वाइरस के म्युटेशन की वज़ह से। एच १ इन १ का म्युटेशन होकर ऐच ३ एन आने का अंदेशा है।
२. आज ४३ देशों में इसका आतंक छाया हुआ है।
३. इसकी महामारी ने अमेरिका में १५ बच्चों को निगल लिया है।
४. अमेरिका का सी.डी.सी. याने सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल हर हफ्ते स्वाइन फ्ल्यू पर साप्ताहिक अपडेट देता है।
इंडिया में स्वाइन पर आखरी गाइड लाइन भारत सरकार ने २००९ में दी थी।
५. अमेरिका में हर सिटीजन इसके उपचार, टेस्ट, दवा आदि की जानकारी स्मार्ट फ़ोन के विभिन्न एप्प्स - CDC Influenza, Flu Defender, Everyday Health Flu Map website, पर है।
जबकि हमारे यहां घोर अन्धेरा है. याने darkness.com का वर्चस्व है।
५. Urgent Care 24/7 Medical Help: द्वारा किसी भी वक़्त आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते है। यह एप उन डॉक्टर्स का रजिस्टर रखता है जो उस समय पर सेवा देने हेतु उबलब्ध होते हैं।
यहाँ सरकारी महकमे के अलावा जानकारी किसी को नहीं है. प्राइवेट अस्पताल या डॉक्टर्स को कोई दिशा निर्देश नहीं ज़ारी हुए हैं आज तक ।
याने जहाँ एक ओर दुनिया इसे सर्वाधिक अर्जेंट मान कर कार्य कर रही है वहीं दूसरी और क्या हम दिखावा और ढिंढोरा वाली पुरानी नीति अपना कर जनता को मूर्ख बना रहे है?
डॉ. अशोक मित्तल। ०८-०२-२०१५
Thursday, February 5, 2015
सुना है पूर्व मुख्य मंत्री ने पश्चिम की ओर याने मुंबई प्रस्थान कर लिया है इलाज़ हेतु। शायद मुफ्त दवा योजना की असलियत पता चल गई है।
सुना है पूर्व मुख्य मंत्री ने पश्चिम की ओर याने मुंबई प्रस्थान कर लिया है इलाज़ हेतु। शायद मुफ्त दवा योजना की असलियत पता चल गई है।
स्वाइन फ्ल्यू कंट्रोल में कोताही न बरतने के निर्देश का मतलब क्या?
अब जैसे जैसे स्वाइन मौतों का खौफ जन साधारण में बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे ही सरकार भी इससे जूझने के रोज़ नए उपाय कर रही है। यानी नींद में सोयी हुई सरकार ने सबसे पहले तो डॉक्टरों को ही सदा की भाँती कोताही न बरतने का आदेश दे डाला। और अपनी गर्दन सुरक्षित कर ली। तो क्या डॉक्टर्स कौताही बरतने के आदि हैं? आई.एम.ए. के लिए भी यह एक सवाल है?
दवा किसे देनी, स्वाब टेस्ट किसका करवाना, भर्ती किसे करना और किसे न करना क्या डॉक्टर के हाथ में है? ये सब सरकार की सहूलियत पर निर्भर है। स्वाइन फ्ल्यू मरीज़ों की लम्बी कतारें इस का जीवित प्रमाण हैं कि सरकार के इंतज़ाम कितने माकूल हैं। डॉक्टरं को तो साधनों के हिसाब से ही कार्य करना होता है।
जागरूकता अभियान भी कितना सजगता से चलाया जा रहा है - सबको विदित है। सबसे विकट स्थिति तो तब होगी यदि सभी लोग वास्तव में जागरूक हो जाएं। ऐसा हो गया तो अस्पतालों का द्रश्य एक सेवा का मंदिर न होकर कुश्ती के अखाड़े में बदल जाएगा। क्यूंकि वहां हर सुविधा की कमी है। तो सोई हुई सरकार और सोई हुई जनता और जागा हुआ स्वाइन फ्ल्यू। जीतेगा कौन और मरेगा कौन?
अरे भाई घर घर जाकर जोधपुर, जयपुर में क्या सर्वे हो रहा है? कोई वोट मांगने थोड़े ही जाना है जिस तरह चुनाव प्रचार में जाते है? इतना सरकारी अमला, पैसा, ईंधन खर्च करके क्या हासिल हुआ?
किसी भी महामारी से निपटने के दो साधारण कदम होते हैं। पहला - बचाव। दूसरा - उपचार।
तो बचाव के क्या उपाय हुए? सफाई जो एक पहली आवश्यकता है वो तो हुई नहीं। जगह जगह गन्दगी के ढेर में डेरा जमाये बैठी बीमारियों की और ध्यान देते और घर घर जाकर सर्वे में खर्च किया धन. ईंधन और मेन पावर को सफाई में लगाया होता तो 40% प्रिवेंशन (बचाव) तो ऐसे ही हो जाता।
सरकार के अनगिनत प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, सेटेलाइट अस्पताल, जिला अस्पताल, आदि पर उपचार, निदान आदि की सुविधाएं यदि समय रहते मुहैय्या करा दी जाती तो न तो सारा बर्डन राज्य के 6 मेडिकल कॉलेजों पर पड़ता और न ही ये बिमारी आज दैत्य का रूप धारण करती।
पहली बार तो इस बिमारी का अवतार हुआ नहीं है? पहले भी कई जानें निगल चुकी है। मौसम का भी पता था कि इसके लिए माकूल है।
बच्चों की प्रार्थना सभा बंद करने से क्या होगा? ये हर किसी के समझ से बाहर है। कक्षा में तो सब पास ही बैठते है। इससे अच्छा तो प्रार्थना सभा होती रहें, उसमें सबको स्वाइन फ्ल्यू के प्रति जागरूक किया जाये, किसी भी बच्चे को यदि फ्ल्यू के लक्षण हों तो उसे निदान हेतु भेजा जाये, क्यूंकि यदि कोई फ्ल्यू से ग्रसित छात्र सीधे कक्षा में चला गया तो औरों को भी चपेट में ले लेगा।
क्या जयपुर, अजमेर के कलेक्टर इन प्रार्थना सभाओं को बंद करने के फरमान का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण देंगे?
इन सबसे अच्छा तो सभी अस्पतालों में टेस्टिंग की सुविधाएँ, इलाज़ के लिए गोलियों की उपलब्धता, हर सरकारी अस्पताल में में बिस्तर, टेस्टिंग की सिर्फ दो मशीनों की जगह ज्यादा मशीनें आदि पर अभी भी ध्यान दें तो अच्छा होगा।
रह रह कर याद आ रहा है सरकारी अमले को, रोज़ नई तरतीब बैठाई जा रही है। आज ध्यान आया की दो मशीनों से तो सिर्फ 80 - 100 मरीज़ों का ही स्वाइन टेस्ट हो सकता है तो आज जयपुर में एक प्राइवेट कंपनी को भी ठेका दे दिया। ये सब पहले क्यों नहीं किया? अन्य शहरों और कस्बों में ये टेस्ट की सुविधा क्यों नहीं?
ये सब सोई हुई जनता और उनके सोये हुए नसीब का फल है शायद। इसी लिये राज्य के सबसे प्रसिद्ध और माने हुए न्यूरोलॉजिस्ट को पूरे अभियान का डायरेक्टर बनाया गया है।
आम जनता तो प्रार्थना ही कर सकती है की स्वाइन फ्ल्यू जल्द से जल्द ख़त्म हो, मौतों के तांडव से मेरा देश मुक्त हो। राज्य सरकारों को सद्बुद्धि दे की इस जान लेवा वाइरस से युद्ध स्तर पर लड़ने की समय बद्ध योजना बनाये. रोज़ नई मन लुभावन तरकीब छोड़ने से कुछ हासिल नहीं होने वाला।
डॉ. अशोक मित्तल 05 -02 -2015
अब जैसे जैसे स्वाइन मौतों का खौफ जन साधारण में बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे ही सरकार भी इससे जूझने के रोज़ नए उपाय कर रही है। यानी नींद में सोयी हुई सरकार ने सबसे पहले तो डॉक्टरों को ही सदा की भाँती कोताही न बरतने का आदेश दे डाला। और अपनी गर्दन सुरक्षित कर ली। तो क्या डॉक्टर्स कौताही बरतने के आदि हैं? आई.एम.ए. के लिए भी यह एक सवाल है?
दवा किसे देनी, स्वाब टेस्ट किसका करवाना, भर्ती किसे करना और किसे न करना क्या डॉक्टर के हाथ में है? ये सब सरकार की सहूलियत पर निर्भर है। स्वाइन फ्ल्यू मरीज़ों की लम्बी कतारें इस का जीवित प्रमाण हैं कि सरकार के इंतज़ाम कितने माकूल हैं। डॉक्टरं को तो साधनों के हिसाब से ही कार्य करना होता है।
जागरूकता अभियान भी कितना सजगता से चलाया जा रहा है - सबको विदित है। सबसे विकट स्थिति तो तब होगी यदि सभी लोग वास्तव में जागरूक हो जाएं। ऐसा हो गया तो अस्पतालों का द्रश्य एक सेवा का मंदिर न होकर कुश्ती के अखाड़े में बदल जाएगा। क्यूंकि वहां हर सुविधा की कमी है। तो सोई हुई सरकार और सोई हुई जनता और जागा हुआ स्वाइन फ्ल्यू। जीतेगा कौन और मरेगा कौन?
अरे भाई घर घर जाकर जोधपुर, जयपुर में क्या सर्वे हो रहा है? कोई वोट मांगने थोड़े ही जाना है जिस तरह चुनाव प्रचार में जाते है? इतना सरकारी अमला, पैसा, ईंधन खर्च करके क्या हासिल हुआ?
किसी भी महामारी से निपटने के दो साधारण कदम होते हैं। पहला - बचाव। दूसरा - उपचार।
तो बचाव के क्या उपाय हुए? सफाई जो एक पहली आवश्यकता है वो तो हुई नहीं। जगह जगह गन्दगी के ढेर में डेरा जमाये बैठी बीमारियों की और ध्यान देते और घर घर जाकर सर्वे में खर्च किया धन. ईंधन और मेन पावर को सफाई में लगाया होता तो 40% प्रिवेंशन (बचाव) तो ऐसे ही हो जाता।
सरकार के अनगिनत प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, सेटेलाइट अस्पताल, जिला अस्पताल, आदि पर उपचार, निदान आदि की सुविधाएं यदि समय रहते मुहैय्या करा दी जाती तो न तो सारा बर्डन राज्य के 6 मेडिकल कॉलेजों पर पड़ता और न ही ये बिमारी आज दैत्य का रूप धारण करती।
पहली बार तो इस बिमारी का अवतार हुआ नहीं है? पहले भी कई जानें निगल चुकी है। मौसम का भी पता था कि इसके लिए माकूल है।
बच्चों की प्रार्थना सभा बंद करने से क्या होगा? ये हर किसी के समझ से बाहर है। कक्षा में तो सब पास ही बैठते है। इससे अच्छा तो प्रार्थना सभा होती रहें, उसमें सबको स्वाइन फ्ल्यू के प्रति जागरूक किया जाये, किसी भी बच्चे को यदि फ्ल्यू के लक्षण हों तो उसे निदान हेतु भेजा जाये, क्यूंकि यदि कोई फ्ल्यू से ग्रसित छात्र सीधे कक्षा में चला गया तो औरों को भी चपेट में ले लेगा।
क्या जयपुर, अजमेर के कलेक्टर इन प्रार्थना सभाओं को बंद करने के फरमान का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण देंगे?
इन सबसे अच्छा तो सभी अस्पतालों में टेस्टिंग की सुविधाएँ, इलाज़ के लिए गोलियों की उपलब्धता, हर सरकारी अस्पताल में में बिस्तर, टेस्टिंग की सिर्फ दो मशीनों की जगह ज्यादा मशीनें आदि पर अभी भी ध्यान दें तो अच्छा होगा।
रह रह कर याद आ रहा है सरकारी अमले को, रोज़ नई तरतीब बैठाई जा रही है। आज ध्यान आया की दो मशीनों से तो सिर्फ 80 - 100 मरीज़ों का ही स्वाइन टेस्ट हो सकता है तो आज जयपुर में एक प्राइवेट कंपनी को भी ठेका दे दिया। ये सब पहले क्यों नहीं किया? अन्य शहरों और कस्बों में ये टेस्ट की सुविधा क्यों नहीं?
ये सब सोई हुई जनता और उनके सोये हुए नसीब का फल है शायद। इसी लिये राज्य के सबसे प्रसिद्ध और माने हुए न्यूरोलॉजिस्ट को पूरे अभियान का डायरेक्टर बनाया गया है।
आम जनता तो प्रार्थना ही कर सकती है की स्वाइन फ्ल्यू जल्द से जल्द ख़त्म हो, मौतों के तांडव से मेरा देश मुक्त हो। राज्य सरकारों को सद्बुद्धि दे की इस जान लेवा वाइरस से युद्ध स्तर पर लड़ने की समय बद्ध योजना बनाये. रोज़ नई मन लुभावन तरकीब छोड़ने से कुछ हासिल नहीं होने वाला।
डॉ. अशोक मित्तल 05 -02 -2015
Tuesday, February 3, 2015
03-02-2015 स्वाइन फ्लू
“हाई अलर्ट” या “हाई प्रोफाइल अलर्ट” ??
स्वाइन फ्लू का आज से राजस्थान सरकार ने हाई अलर्ट जारी कर दिया है। सवाल ये है की आज अचानक ये हाई अलर्ट क्यों? चर्चा
है की तीन दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री और अब राज्य के गृह मंत्री स्वाइन फ्लू पॉजिटिव पाये गए है। आम जनता को इस हाई अलर्ट से क्या स्वाइन फ्लू नहीं होने की या हो जाये तो इन हाई प्रोफाइल लोगों की तरह तुरंत टेस्ट और इलाज़ की गारंटी मिल जाएगी? कदापि
नहीं। सीमित स्वाइन फ्लू टेस्ट के साधन, डॉक्टरों
की वही सीमित
संख्या, टेमीफ्लू दवा की कमी, और
ऊपर से वाइरस का म्यूटेशन, कुल
मिला कर काफी चिंता जनक स्थिति है स्वस्थ्य सेवाओं की।
गरीब आदमी मर्ज़ी से टेस्ट कराये तो 500 कहाँ से लाये? डॉक्टर यदि उसका टेस्ट नहीं करे और बाद में स्वाइन पॉजिटिव निकल जाये तो ये निश्चित है की डॉ. साहब कहाँ जायेंगे?
हाई अलर्ट का
मतलब शायद सरकार
के मायनो में
सिर्फ इसे जारी
करना हो या
हाई प्रोफाइल व्यक्तियों पर
तुरंत ध्यान देने
का इशारा हो।
लेकिन मेडिकल पॉइंट
ऑफ़ व्यू से
एक युद्ध जैसी
स्थिति से निपटने
से भी बेहतर तैयारी का मतलब ही हाई अलर्ट है।
ऐसी विज्ञप्ति जारी करके, बच्चों की प्रार्थना सभा बंद करके और डॉक्टरों की छुट्टियों की छुट्टी करके सरकारी अफसरों और नेताओं ने जहाँ एक ओर अपनी गर्दन की सेफटी कर ली है वहीँ डॉक्टरों की गर्दन पर तलवार लकटा दी है। यानी कि अब यदि कोई हादसा हुआ तो सारा ठीकरा डॉक्टरों के माथे पर। फिर कोई न कोई या तो ससपेंड या फिर जेल में।
2015 में अब तक 259 स्वाइन पॉजिटिव आये जिनमे से 52 की दुर्भाग्यवश मौत हो चुकी है करीब 20 % की मृत्युदर से।
ऐसी विज्ञप्ति जारी करके, बच्चों की प्रार्थना सभा बंद करके और डॉक्टरों की छुट्टियों की छुट्टी करके सरकारी अफसरों और नेताओं ने जहाँ एक ओर अपनी गर्दन की सेफटी कर ली है वहीँ डॉक्टरों की गर्दन पर तलवार लकटा दी है। यानी कि अब यदि कोई हादसा हुआ तो सारा ठीकरा डॉक्टरों के माथे पर। फिर कोई न कोई या तो ससपेंड या फिर जेल में।
2015 में अब तक 259 स्वाइन पॉजिटिव आये जिनमे से 52 की दुर्भाग्यवश मौत हो चुकी है करीब 20 % की मृत्युदर से।
टेस्ट की रिपोर्ट 12 घंटे
में देने के
फरमान का स्वागत
है। पिछले सीजन में
तो मरणोपरांत सात - सात
दिन बाद रिपोर्ट आती
थी।
स्कूलों में प्रार्थना सभा
बंद किये जाने
का भी स्वागत
है। लेकिन रेलवे
स्टेशनों, बस स्टैंडों, न्यायालयों, बिल
जमा करने हेतु
व् अस्पतालों में
मरीजों की लम्बी लम्बी
कतारें चाहे डॉक्टर
को दिखाने को
हो या फिर
मुफ्त दवा लेने
को हो - यहां
एकत्रित भीड़ में से
हर कोई अपने
जल्दी नंबर आने
की प्रार्थना करता
रहता है और
ख़ैर मनाता रहता है
की कहीं उसे
भी भेंट स्वरुप
लाइन में लगा
कोई व्यक्ति स्वाइन
फ्लू का वायरस
न देदे। इनकी प्रार्थनाओं पर
भी सरकार को
गौर करने की
आवश्यकता है। (क्रमशः) डॉ. अशोक
मित्तल.
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